Hartalika Teej Katha in Hindi: भाद्रपद मास की शुक्ल तृतीया को हरतालिका तीज का व्रत रखा जाता है। इस साल यह पर्व 26 अगस्त को मनाया जाएगा। खास बात यह है कि इस बार सुबह 06 बजे तक हस्त नक्षत्र रहेगा और शास्त्रों में बताया गया है कि जब तीज हस्त नक्षत्र में पड़े तो उसका महत्व और भी बढ़ जाता है। इस दिन मिट्टी से भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा बनाकर पूजा की जाती है। प्रदोष काल में उनका पूजन और आरती करने का विधान है। पूजा के बाद इस व्रत की कथा सुनी और सुनाई जाती है।
Hartalika Teej Katha in Hindi
कैलाश पर्वत पर भगवान शिव माता पार्वती और अपने गणों के साथ विराजमान थे। एक दिन माता पार्वती ने folded hands के साथ भगवान शिव से पूछा, “हे महेश्वर, मैंने कौन सा ऐसा पुण्य किया कि मुझे आपके जैसा पति प्राप्त हुआ?” भगवान शिव ने उत्तर दिया कि तुम्हें यह सौभाग्य एक विशेष व्रत के कारण मिला है, जो भाद्रपद मास की शुक्ल तृतीया को किया जाता है। यही हरतालिका तीज व्रत है।
भगवान शिव ने बताया कि हिमालय के राजा हिमाचल और रानी मैना की पुत्री पार्वती ने बचपन से ही मेरा ध्यान करना शुरू किया। समय बीतने पर उन्होंने सहेलियों के साथ जंगल और गुफाओं में जाकर कठोर तपस्या की। गर्मी में धूप में बैठकर, वर्षा में पानी में भीगकर और सर्दी में ठंडी नदी में खड़े होकर उन्होंने व्रत किया। इस दौरान वे केवल हवा और पत्तों पर जीवित रहीं। उनकी इस तपस्या से शरीर अत्यंत कमजोर हो गया।
जब राजा हिमाचल ने देखा कि बेटी इतनी कठिन तप कर रही है तो वे चिंतित हो गए। तभी नारद जी आए और उन्होंने विवाह का प्रस्ताव भगवान विष्णु के लिए रखा। राजा ने इसे स्वीकार कर लिया। यह सुनकर माता पार्वती बहुत दुखी हुईं। उन्होंने अपनी सखी से कहा कि वे उन्हें ऐसी जगह ले चलें जहां कोई ढूंढ न सके। सखी के साथ वे घने वन की गुफा में चली गईं और वहां निर्जल रहकर रेत से शिवलिंग बनाकर पूजा करने लगीं।
भाद्रपद मास की शुक्ल तृतीया और हस्त नक्षत्र का वह दिन था। पार्वती जी की कठोर तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए। उनका सिंहासन हिलने लगा और वे स्वयं गुफा में माता के सामने प्रकट हुए। भगवान शिव ने कहा कि वे उनके व्रत और भक्ति से प्रसन्न हैं और कोई भी वर मांग सकती हैं। पार्वती जी ने लज्जा से निवेदन किया कि वे उन्हें पति के रूप में पाना चाहती हैं। शिवजी ने वरदान दिया और अंतर्ध्यान हो गए।
विवाह का प्रसंग
इसके बाद माता पार्वती नदी तट पर गईं जहां उनके पिता हिमाचल और माता मैना उनसे मिले। पार्वती ने पिता से कहा कि वे भगवान विष्णु से विवाह नहीं करेंगी और यदि जबरन विवाह किया गया तो वे अपने प्राण त्याग देंगी। यह सुनकर राजा हिमाचल ने निर्णय लिया कि वे अपनी पुत्री का विवाह केवल भगवान शिव से करेंगे। बाद में भव्य उत्सव के साथ माता पार्वती और भगवान शिव का विवाह सम्पन्न हुआ।
इसी व्रत और तपस्या की याद में हर साल हरतालिका तीज का पर्व मनाया जाता है। यह व्रत महिलाओं के लिए अखंड सौभाग्य और वैवाहिक सुख का प्रतीक माना गया है।