नवरात्रि के दौरान क्यों होती है ‘सिंदूर खेला’ की रस्म!

नवरात्रि के दौरान क्यों होती है ‘सिंदूर खेला’ की रस्म!

नवरात्रि यानी की नौ दिन. साल में दो नवरात्रि आती हैं. जिसमें से शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व है. हिंदुओं के लिए नवरात्रि के नौ दिनों के कई मायने है. इन नौ दिनों में मां दूर्गा के नौ स्वरूपों को पूजा जाता है. हर दिन माता के अलग रूप का पूजन होता है. हर राज्यों में नवरात्रि मनाने का ढ़ंग अलग और काफी आकर्षक है. फिर चाहे गुजरात के नौ दिनों की डांडियां नाइट्स हो या बंगाल में मां दुर्गा का विशेष बंगाली पंडाल हो.

बंगाल में नवरात्रि के नौ दिनों में से पांच दिन विशेष मां दुर्गा के होते हैं. बंगाली समुदाय मां दुग्गा को पांच दिनों के लिए भव्य पंडालों में विराजित करते हैं. पांच दिनों की ये दुर्गा पूजा सबसे अद्भूत मानी जाती है. दूर्गा पूजा के दौरान बंगाली कई तरह की रस्में करते हैं. उन्हीं कुछ रस्मों में से एक रस्म ‘सिंदूर खेला’ है. बंगाल की सुहागन महिलाएं सिंदूर खेला की रस्में काफी हर्षोल्लास के साथ करती हैं.

नवरात्रि के दौरान क्यों होती है ‘सिंदूर खेला’ की रस्म!

इस साल की शारदीय नवरात्रि की शुरूआत 15 अक्टूबर से होने जा रही है. जो 23 अक्टूबर को समाप्त होगी. वहीं पश्चिम बंगाल की दूर्गा पूजा 20 अक्टूबर से शुरू हो, 24 अक्टूबर तक चलेगी. इसके अलावा बंगाल में सिंदूर खेला की रस्म दूर्गा पूजा के आखिरी दिन यानी 24 अक्टूबर को खेली जाएगी. आइए जानते है कि पश्चिम बंगाल में दूर्गा पूजा के आखिरी दिन होने वाली सिंदूर खेला की इस रस्म का क्या महत्व है.

बंगालियों में माता दूर्गा के महिषासुर मर्दिनी स्वरूप को पूजा जाता है. दूर्गा पूजा के दौरान सजे भव्य पंडालों में माता के इस स्वरूप की प्रतिमा विराजित की जाती है. इसके साथ मां सरस्वती और मां लक्ष्मी की भी मूर्ति होती है. मान्यता है कि तीनों माताएं अपने बच्चों को अपने साथ लेकर धरती पर अवतरित हो, अपने मायके आती हैं. इसलिए पांच दिनों तक उनके स्वागत में धूमधाम से ये त्योहार मनाया जाता है. इसके आखिरी दिन यानी दशमी को सभी सुहागिन महिलाएं सिंदूर खेला की रस्म के दौरान माता को सिंदूर अर्पित कर उन्हें विदा करती हैं.

नवरात्रि के दौरान क्यों होती है ‘सिंदूर खेला’ की रस्म!

अपने पतियों की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हुए सभी सुहागिनें पान के पत्तें में सिंदूर रख, उसे माता को लगाती हैं. इसके बाद सभी महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाते हुए धूनुचि नृत्य कर इस परंपरा को पूरा करती हैं. माता को सिंदूर लगाकर उन्हें उनके मायके से विदा किया जाता है.