हर साल भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से पितृ पक्ष शुरू होता है. जो अश्र्विन महिने की अमावस्या तक चलता है. इस साल पितृ पक्ष 29 दिसंबर से शुरू हुई है, जो 14 अक्टूबर तक चलेगा. पितृपक्ष के दौरान हर कोई अपने पितरों का श्राद्ध और उनका तर्पण करता है. साथ ही इस अंतराल में पितरों की तिथि के अनुसार उनका मनपसंद खाना खिलाकर ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है.
पितरों के नाम पर कौओं को भी भोजन कराने की मान्यता बरसों से चली आ रही है. हिंदू धर्म में कौओं को पितरों का दर्जा दिया गया है. लेकिन क्या कभी आपके दिमाग में इस बात का विचार आया है कि आखिर कौओं को ही पितरों का दर्जा क्यों मिला है?

शास्त्रों के मुताबिक, पितृ पक्ष के दौरान पितर देव कौओं के रूप में धरती पर उतरते हैं. शास्त्रों में इस बात का ज़िक्र किया गया है कि सभी देवगण के साथ कोवों ने भी अमृत चखा था. जिसके बाद से ये मान्यता बन गई कि कौओं की मौत बाकी पक्षियों की तरह कभी प्राकृतिक रूप से नहीं होती.
वे लंबी दूरी की यात्रा आराम से बिना थके तय कर सकते है. जिसके चलते कैसी भी आत्मा कौओं के शरीर में वास कर सकती है. इसी कारण के चलते पितृ पक्ष के समय कोऔं को भोजन कराया जाता है. वहीं इसके अलावा एक मान्यता ये भी है कि जब किसी मनुष्य की मौत हो जाती है तो उसका जन्म कौए की योनी में होता है.