भारत अनगिनत त्योहारों और तरह-तरह के पर्वों का मेल है. भारत की ये विविधता पूरी दुनिया से अलग है. सभी त्योहारों के अपने खास और अलग मायनें है. लेकिन दिवाली यानी की दीप का त्योहार सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. दिपावली दिपों का त्योहारों है. हर घर, हर मोहल्ले, हर राज्य..सारी जगह दीपों को प्रज्वलित किया जाता है. लाइट्स लगाई जाती है. इस दिन पूरे भारत में चारों ओर रोशनी छाई रहती है. मान्यता है कि दिवाली के अवसर पर धन की देवी मां लक्ष्मी का घर में आगमन होता है. दिवाली के मौके पर रात को लक्ष्मी-गणेश की पूजन का विधान सदियों से चलता आ रहा है. उससे पहले मंदिर में लक्ष्मी गणेश की नई प्रतिमा विराजित की जाती है. आइए जानते है किस तरह की प्रतिमा खरीदना उचित है.

इस बार दिवाली 12 नवंबर को मनाई जाएगी. दिवाली खुशियों का त्योहार है. माना जाता है कि जिस घर पर भी माता लक्ष्मी का आशीर्वाद होता है, वे घर धन-संपत्ति और एशोआराम से गूंज उठता है. इस ऐश्वर्य की देवी मां लक्ष्मी और श्रीगणेश का पूजन किया जाता है. साथ ही हर साल दिवाली के दिन माता लक्ष्मी और श्रीगणेश की नई प्रतिमा खरीदकर उसकी पूजा की जाती है. लेकिन मार्किट में कई तरह की प्रतिमाएं दिखाई जाती है. ऐसे में ये समझना मुश्किल हो जाता है कि किस तरह की प्रतिमा लेना उचित है.
इसके लिए आपको बता दे कि लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा दिवाली से दो दिन पहले धनतेरस पर ही खरीद लेनी चाहिए. लक्ष्मी-गणेश को घर लाने का सबसे शुभ दिन धनतेरस ही होता है. अक्सर बाज़ार में संयुक्त गणेश-लक्ष्मी की मुर्तियां मिलती है. लेकिन इसका बात का खास ध्यान रखें कि कभी भी संयुक्त गणेश-लक्ष्मी की प्रतिमा न लें. ये अशुभ माना गया है. इसकी बजाए, दोनों की प्रतिमा अलग-अलग ही लेनी चाहिए.
इस तरह होने चाहिए श्रीगणेश
इसके अलावा हमेशा बैठी मुद्रा के गणेश-लक्ष्मी लेने उचित माना गया है. साथ ही, गणेश जी की सूंड भी दाएं ओर की तरफ मुड़ी होनी चाहिए. गणेश जी की मुर्ति में वो अपने हाथ में मोदक लिए वाहन चूहे पर सवार होने चाहिए.

माता लक्ष्मी का होना चाहिए ये रूप
महान विद्वानों का कहना है कि मूर्ति खरीदते समय इस बात का खास ध्यान रखें की लक्ष्मी मां के हाथों से धन की वर्षा हो रही हो. इसके अलावा ये भी ध्यान में रखे कि मां अपने वाहन उल्लू की जगह हाथी या कमल पर विराजित हो. भगवान की मिट्टी से बनी प्रतिमा को सबसे शुभ माना गया है.