Navratri 6th Day: नवरात्रि का छठा दिन माँ दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप को समर्पित है. कहा जाता है जब जब असुरों का विनाश बढ़ा, तब तब देवी माँ ने अलग-अलग स्वरूप में उनका संहार किया. ऐसे ही माँ का छठा रूप है. जिसे नवरात्र के छठे दिन पूजा जाता है. इस दिन मां के इस छठे स्वरूप की पूजा-अर्चना करने का विधान है. शेर पर विराजित इन माता की चार भुजाएं है. जिनमें से माता की बाईं हाथ की एक भुजा में कमल है, तो दुसरी में तलवार. वहीं, दाईं हाथ की ऊपर वाली भुजा अभयमुद्रा में रहता है, तो वहीं नीचे वाली भुजा वर मुद्रा में. माता का शरीर स्वर्ण के समान अत्यंत प्रकाशमयी है.

पौराणिक कथा के अनुसार, प्रसिद्ध ऋषि कात्ययन की कोई संतान नहीं थी. माँ भगवती को अपनी पुत्री रूप में पाने के लिए उन्होंने कड़ी तपस्या की थी. जिससे प्रसन्न हो माँ आदीशक्ति ने कात्ययनी देवी के रूप में जन्म लिया. कात्ययन ऋषि के घर जन्म लेने के कारण माता कात्यायनी कहलाई. षष्ठी तिथि में जन्म लेने के कारण माता के इस स्वरूप को नवरात्रि के छठे दिन पूजा जाता है.
इसके अलावा धरती पर महिषासुर नाम के असुर का आतंक इतना बढ़ गया था कि माता को पृथ्वी पर देवी के रूप में प्रकट होना पड़ा. मान्यता है कि इन माता की पूजा और व्रत करने से कुंवारी कन्याओं के विवाह में आ रही अड़चनें भी समाप्त हो जाती हैं. माता कात्यायनी अपने भक्तों के रोग, शोक, भय और जन्म-जन्मांतर के पापों का सर्वनाश करती हैं. माता कात्यननी की पूजा-अराधना ब्रज की गोपियों ने भी कृष्ण को अपने पति के रूप में पाने के लिए की थी.