शेर कैसे बने माता दूर्गा के प्रिय वाहन?

शेर कैसे बने माता दूर्गा के प्रिय वाहन?

कल से शारदीय नवरात्रि का पावन पर्व शुरू होने जा रहा है. मातारानी के भक्त उनके इस पर्व का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं. इस पर्व के नौ दिनों में मातारानी के नौ अलग-अलग स्वरूपों को पूजा जाता है. माता के ये रुप सशक्त नारी शक्ति का प्रतीक होते हैं. हर भगवान के अपने वाहन होते है. जैसे भगवान शिव के वाहन नंदी है, भगवान गणेश के वाहन मूषक है. तो वहीं, भगवती दुर्गा को सिंह यानी शेर की सवारी माना जाता है. लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि मातारानी का वाहन शेर ही क्यों है? आइए बताते हैं.

शेर कैसे बने माता दूर्गा के प्रिय वाहन?

माता दुर्गा के अनेक स्वरूप अथवा नाम है. जैसे वे शेरावाली भी है, सिंहवाहिनी भी है. पौराणिक कथाओं में कथित है कि माता पार्वति ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए सालों कठोर तपस्या की थी. जिससे प्रसन्न होकर महादेव ने माता पार्वति से विवाह रचाया. लेकिन माता के कठोर तप करने के कारण मातारानी का रंग सांवला हो गया था. जिसको लेकर भगवान शिव मातारानी के साथ उनके काले रंग को लेकर हंसी-ठिठोली करते थे. इस बात से क्रोधित हो माता कैलाश छोड़, वन को चली गईं. वन जाकर माता ने फिर से सालों तप किया. तपस्या के दौरान एक भूखा शेर शिकार को ढ़ूंढता हुआ माता रानी के पास पहुँच जाता है.

शेर कैसे बने माता दूर्गा के प्रिय वाहन?

माता रानी को तप करते देख वे शेर माता के पास चुपचाप बैठ जाता है. माता की तपस्या को सालों बीत जाते हैं, लेकिन उनकी तपस्या पूरी होने के कोई आसार नज़र नहीं आते. फिर भी वे सिंह वहीं बैठा रहता. माता की इस कठोर तपस्या को देख महादेव उसी वन में प्रकट को माता को गोरे रंग का वरदान दे जाते हैं. ये वरदान मिलने के कुछ देर बाद ही माता अपनी तपस्या से जाग जाती हैं. जिसके बाद माता सबसे पहले गंगा स्नान करने जाती है. स्नान करते दौरान माता के अंदर से देवी प्रकट होती है, इन देवी का रंग बिल्कुल काला था. जिनका नाम माता कौशिकी पड़ गया. माता रानी का रंग गौरा हो जाने के बाद माता पार्वती का नाम गौरी पड़ गया.

शेर कैसे बने माता दूर्गा के प्रिय वाहन?

माता ने जब शेर को अपने निकट देखा और उन्हें ये पता  लगा कि वे शेर सालों से माता की तपस्या समाप्त होने का इंतज़ार कर रहा था, तो इससे प्रसन्न होकर मातारानी ने उस सिंह को अपना वाहन बना लिया और शेरावाली माता जैसे कई नामों से जाने जानी लगीं.