जल्द उठने वाले हैं देव, राजस्थानी लोग कुछ इस तरह के गीत गाकर मनाते है देवउठनी एकादशी!

जल्द उठने वाले हैं देव, राजस्थानी लोग कुछ इस तरह के गीत गाकर मनाते है देवउठनी एकादशी!

कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी का पर्व मनाया जाता है. साल की सभी एकादशियों में ये सबसे महत्वपूर्ण एकादशी मानी जाती है. इसके साथ इस दिन चातुर्मास का समापन होता है. चातुर्मास के चार माहों की शुरूआत होते ही देव शयन काल में यानी क्षीर सागर में योग निद्रा में चले जाते हैं. इस साल का चातुर्मास अधिक मास होने के कारण पांच महीने का था. ऐसे में ब्रह्मांड के संचालक श्री हरि विष्णु पूरे पांच महीनों बाद अपनी योग निद्रा से जागने वाले है. जिसे देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. लेकिन क्या आप जानते है कि इस दिन थाली और सूप बजाने की परंपरा इतनी प्रचलित क्यों है? आइए जानते है.

जल्द उठने वाले हैं देव, राजस्थानी लोग कुछ इस तरह के गीत गाकर मनाते है देवउठनी एकादशी!


इस साल देवउठठनी एकादशी 23 नवंबर को मनाई जाएगी. भगवान विष्णु के निद्रा से जागने के बाद हर कोई मांगलिक कार्य भी शुरू कर सकता है. इस दिन से खासतौर पर माता लक्ष्मी-नारायण की पूजा की जाती है. इस ही दिन तुलसी विवाह करने की भी मान्यता है. इस अवसर पर घर में चावल के आटे से चौक बनाकर गन्ने का मंडप तैयार किया जाता है और श्रीहरि और तुलसी विवाह किया जाता है. मां तुलसी और शालीग्राम विवाह होने के कारण इस दिन के शादी-विवाह के सांय बहुत ज्यादा होते है.

जल्द उठने वाले हैं देव, राजस्थानी लोग कुछ इस तरह के गीत गाकर मनाते है देवउठनी एकादशी!

राजस्थान की अनोखी प्रथा

चातुर्मास के समापन पर जब देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का उठने का समय हो जाता है, तो उन्हें उठाने के लिए राजस्थान में बड़ी अनोखी से प्रथा प्रचलित है. जिसमें राजस्थानी लोग थाल और सूप बजाकर श्री हरि को उनकी निद्रा से जगाने की कोशिश करते है. इस दौरान लोग चौक और गेरू से गाय-भैंस के पैर और फूल-पत्ती जैसे तरह-तरह के डिज़ाइन्स बनाते है. साथ ही, दीवार पर भगवान विष्णु की तस्वीर बनाई जाती है और उनके पास बैठकर थाली और सूप बजाकर देव को उठाने के लिए ‘उठो देव बैठों देव, अंगुरिया चटकाओं देव’ जैसे गीत गाये जाते है.