आज प्रभु श्रीराम की अयोध्या नगरी उनके स्वागत में सज रही है. अयोध्या ही नहीं, बल्कि देश के कोने-कोने में राम आएँगें जैसे सुहावने गीत सुनाई दे रहें हैं. रामलला के ऐतिहासिक मंदिर के निर्माण की तैयारी अपने आखिरी चरण पर है. ऐसे में 22 जनवरी को रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा कर उन्हें, उनके स्थान पर विराजित किया जाएगा. प्राण-प्रतिष्ठा का कार्यक्रम 16 जनवरी से शुरु हो चुका है. जिसमें सबसे पहले प्रायश्चित पूजा कर, प्रभु राम से अनजाने में हुई भूलचुक के लिए क्षमा मांगी गई थी. इसके 17 जनवरी को रामलला को उनके इस आलौकिक मंदिर में लाया जाएगा. अब, जिन रामलला की श्रेष्ठता और महीमा का इतना ब्खान है, आखिर उनका जन्म रघुकुल में कैसे हुआ और कैसे पुरुषोत्तम राम कौशल्यानंदन कहलाएं, आइए जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कथा.
प्रभु श्रीराम ने भगवान विष्णु के सांतवें अवतार के रूप में राजा दशरथ के पुत्र बनकर जन्म लिया था. श्रीराम के जन्म से पहले रघुकुल के राजा दशरथ ने यज्ञ कराया था, जिसके प्रभाव से ही विष्णु जी के 7वें अवतार के रूप में रामजी का जन्म हुआ.

राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी. उन्होंने पुत्र की प्राप्ति के लिए ऋषि वशिष्ठ की आज्ञा से पुत्रेष्टि यज्ञ कराया था. इस यज्ञ को संपन्न कराने का कार्य उन्होंने समस्त मनस्वी, तपस्वी और विद्वान ऋषि-मुनियों को सौंपा था. यज्ञ के दौरान समस्त विद्वान ब्राह्मणों के साथ रघुकुल के गुरु वशिष्ठ भी यज्ञ में मौजूद हुए. इसके बाद विधि-विधान से यज्ञ का शुभारंभ किया गया. यज्ञ के दौरान अग्निदेव ने तीनों रानियों को खीर का प्रसाद ग्रहण करने को दिया. इस यज्ञ से प्राप्त खीर को खाने के बाद ही भगवान श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ था.
वाल्मीकि रामायण के मुताबिक, प्रभु श्रीराम का जन्म चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था. प्रभु के जन्म के समय, नक्षत्र में सूर्य, मंगल,शनि, बृहस्पति और शुक्र ग्रह अपने उच्च स्थानों पर विराजित थे. कर्क लग्न के उदय के साथ सबसे बड़ी रानी कौशल्या के गर्भ से प्रभुराम ने इस संसार में जन्म लिया. यानी रामलला का जन्म काफी शुभ नक्षत्र में हुआ था. रामलला के जन्म की खुशी पूरी अयोध्या नगरी पर छाई थी. प्रभु के जन्म की सबसे ज्यादा खुशी राजा दशरथ को थी. गोस्वामी तुलसीदास जी राजा दशरथ की इसी खुशी का वर्णन करते हुए रामचरितमानस में लिखते हैं-
दसरथ पुत्रजन्म सुनि काना। मानहु ब्रह्मानंद समाना॥
परम प्रेम मन पुलक सरीरा। चाहत उठन करत मति धीरा।।

अर्थात्- पुत्र के जन्म की खबर कानों से सुनकर मानो राजा दशरथ ब्रह्मानंद में समा गए हों. उनके मन में अत्यधिक प्रेम है, शरीर पुलकित हो गया है. वे बुद्धि को धीरज देकर उठना चाहते हैं, लेकिन आनंद में मानो अधीर हो गए हैं.
प्रभु के जन्म के साथ संपूर्ण अयोध्या में आनंद व उल्लास का माहौल था. वही हर्षोउल्लास, आज हर रामभक्त में एक बार फिर देखने को मिल रहा है. क्योंकि राम एक बार फिर अपनी अयोध्यानगरी में पधारने वाले है. राम एक बार फिर आ रहें हैं.