हिंदू समाज में 108 संख्या की इतनी मान्यता है कि हर चीज इसी संख्या से जुड़ी हैं. ईश्वर के नाम का जप 108 बार करते हैं, किसी मंत्र का जाप 108 बार किया जाता है, जप की सभी मालाओं में 108 मनके ही होते हैं. भारत में कुल 108 शक्तिपीठ हैं. यहां तक की वैदिक काल में ऋषि-मुनियों ने भी 108 उपनिषदों की रचना की थी. आखिर सनातन धर्म में 108 अंक का इतना महत्व क्यों हैं? आइए जानते हैं अंक 108 के धार्मिक महत्व के बारे में.
संख्या 108, शून्य से अनंत तक जाता है. संपूर्ण सृष्टि का ज्ञान इस अंक में आता है. हिंदू धर्म में इसे भगवान शिव का सबसे प्रिय अंक माना गया है. वहीं, बौद्ध धर्म में इस अंक के व्यक्ति के भावनाओं के साथ जुड़ने की मान्यता है.
108 अंक की महत्वता को लेकर ये माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण के पीछे हज़ारों गोपियां दीवानी थी. लेकिन उनमें से श्रीकृष्ण को केवल 108 गोपियां अत्यंत प्रिय थीं. जिनके साथ बचपन में वे खेलते थे. वृंदावन की गलियों में भगवान श्रीकृष्ण के इन 108 गोपियों के साथ खेलने का इतिहास है. इसलिए 108 संख्या को काफी शुभ माना गया है.
इसको लेकर एक मान्यता ये भी है कि 108 अंक भगवान शिव का अंक माना जाता है. माना जाता है कि रूद्राक्ष भगवान शिव के अश्रु से बनते हैं. रूद्राक्ष की माला में भी 108 मनके होते हैं. क्योंकि मुख्य शिवांगों की संख्या 108 होती है.
बौद्ध धर्म के अनुसार 108 अंक की ये मान्यता है कि मनुष्य के अंदर 108 तरह की अलग भावनाएं होती हैं. इसलिए इसे शुभ माना गया है.
वहीं, अगर ज्योतिष शास्त्र की बात करें. तो, ज्योतिष में कुल 12 राशियां होती हैं. जिनमें नौ ग्रह विचरण करते हैं और यदि 12 को 9 से गुना किया जाएगा, तो उनकी संख्या भी 108 होती हैं…ऐसे में हर किसी के हिसाब से 108 अंक की अलग विशेषता है.