काफी प्राचीन समय से ही भारत तरह-तरह की परम्पराओं, रीति-रिवाजों का केंद्र रहा है. ये देश अपनी अलग तरह की संस्कृति से जाना जाता है. हमारे संस्कृति की सबसे खूबसूरत बात ये है कि यहां जितने भी अनुष्ठान और रीति-रिवाज होते हैं, उन सबका आधार कहीं न कहीं विज्ञान से जुड़ा हैं. भारतीय संस्कृति के हर रीति-रिवाज और धार्मिक संस्कारों के पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण जरूर होता है.

गाय को दिया माता का दर्जा, मानी जाती पूज्नीय
सदियों से भारत की संस्कृति में गाय को माता का दर्जा दिया गया है. कहा जाता है कि गाय को न केवल पृथ्वी लोक, बल्कि देव लोक में भी पूजा जाता है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें, तो गाय से जुड़ी सभी चीजें मनुष्य के लिए काफी लाभदायक होती है. जैसे गौमूत्र, गोबर, दूध. गाय के मूत्र, गोबर और दूध को काफी पवित्र माना जाता है. कहते है कि जो भी व्यक्ति इन तीनों चीजों का सेवन करता है. उसे कभी किसी भी तरह की बिमारियों का सामना नहीं करना पड़ता.

ये तीनों चीजें ओषधि गुण के रूप में काम आती है. किसी अन्य दूध की अपेक्षा गाय के दूध में प्रोटीन और विटामिन हाई मात्रा में मिलते है. इसलिए हर शुभ कार्य की शुरूआत गोबर लीपने के साथ शुरू हेती है. वैज्ञानिकों का भी यही मानना है कि गोबर में कीटाणु को नाश करने वाले फास्फोरस तत्व अधिक मात्रा में होते हैं. इसलिए गाय के पंचद्रव्य यानी की दूध, घी, दही, गोबर और गौमूत्र को सनातन धर्म में अमृत माना गया है.
ब्रहृम मुहूर्त माना गया सबसे अच्छा समय-
ज्योतिष शास्त्र में ब्रहृम मुहूर्त को सबसे अच्छा समय माना गया है. ये सूर्योदय से ठीक पहले यानी की 4 बजे से लेकर 5:30 बजे तक के बीच का समय होता है. कहा जाता है कि हर मनुष्य को ब्रहृम मुहूर्त के समय उठना चाहिए. इस समय उठने से व्यक्ति को बल, बुद्धि, विद्या और सौंदर्य की प्राप्ति होती है. अगर विज्ञान के मुताबिक बात की जाए, तो इस समय वायुमंडल में प्रदूषण सबसे कम होता है.

जिससे इस समय ऑक्सीजन की मात्रा ज्यादा और साफ होती है. इस वजह से इस समय उठकर घूमने से शरीर में अलग ऊर्जा पैदा होती है. इसके अलावा ब्रहृम मुहूर्त में पढ़ाई करना भी काफी अच्छा माना गया है. इस दौरान शरीर और मस्तिष्क में फूर्ति और ताज़गी होने के कारण दिमाग अच्छे से काम करता है.
जनेऊ धारण करना
पौराणिक काल में शिक्षा ग्रहण करने से पहले ब्रहृमसूत्र किया जाता था. पहले किसी भी बालक की उम्र आठ वर्ष होते ही उसका यज्ञोपवीत संस्कार कर दिया जाता था. कहा जाता है कि जनेऊ धारण करने का सीधा असर हमारे शरीर पर होता है. मनुष्य के विवाह से पहले तीन धागों का जनेऊ और विवाह के बाद धागों का जनेऊ धारण किया जाता है. पौराणिक काल में बालक का यज्ञोपवीत हो जाने के बाद ही उसे शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार प्राप्त होता था.

आयुर्वेदों के मुताबिक, जनेऊ पहनने से मनुष्य की उम्र लंबी होती है, बुद्धि तेज होती है और मन स्थिर होता है. जनेऊ धारण करते समय इसे कानों पर से कस के दो बार लपेटना होता है. ऐसा करने से कान की वो नसें जो पेट की आंतों से जुड़ी होती है, उनपर दबाव ड़लता है. इससे कब्ज़, एसीडिटी, पेट रोग, हृदय रोगों जैसे कई रोग खत्म होते है.