मोहनजोदड़ो के समय से भी पहले प्रचलित थी मंगलसूत्र पहनने की प्रथा

मोहनजोदड़ो के समय से भी पहले प्रचलित थी मंगलसूत्र पहनने की प्रथा

मंगलसूत्र पति-पत्नि के बीच के अटूट बंधन और प्यार का प्रतीक होता है. साथ ही हर सुहागिन स्त्री का अस्तित्व होता है. मान्यतानुसार, मंगलसूत्र के मोतियों में श्री हरि विष्णु और शनिदेव का आशीर्वाद माना जाता है. कहा जाता है कि मंगलसूत्र पति-पत्नि के रिश्ते को मजबूत बनाता है और उनके जीवन की रक्षा करता है. कहा जाता है कि सनातन धर्म में शादीशुदा महिलाओं को मंगलसूत्र धारण करने की प्रथा युगों से चलती आ रही है. लेकिन क्या आप जानते है कि वास्तव में मंगलसूत्र पहनने की परंपरा कब और कहां से शुरू हुई है. आइए जानते है इसके पीछे की कहानी.

मोहनजोदड़ो के समय से भी पहले प्रचलित थी मंगलसूत्र पहनने की प्रथा

माना जाता है कि मंगलसूत्र पति-पत्नि के जीवन का रक्षाकवच होता है. वहीं, कहा जाता है कि मंगलसूत्र पहनने के इतिहास की व्याख्या आदि गुरू शंकराचार्य की पुस्तक ‘सौंदर्य लहरी’ में की गई है. इस किताब में ये कहा गया है कि स्त्रियों के मंगलसूत्र धारण करने की परंपरा छठी शताब्दी से शुरू हुई है. इसके अलावा पहले की महिलाओं द्वारा मंगलसूत्र पहनने के साक्ष्य सिंधू नदी के पास स्थित मोहनजोदड़ो की खुदाई में भी मिले हैं. इस पुस्तक में ये भी बताया गया कि इसकी शुरूआत सबसे पहले दक्षिण भारत से हुई है. दक्षिण भारत से शुरू होते-होते मंगलसूत्र पहनने की परंपरा समस्त भारत के साथ-साथ विदेशों में भी कई जगह शुरू हुई है. तमिलनाडु में सुहागिन के इस सुत्र को थाली या फिर थिरू मंगलयम के नाम से जाना जाता है.

मंगलसूत्र पहनने के फायदे

ज्योतिषविदों के मुताबिक, मंगलसूत्र पहनने के कई फायदे भी है. ये पति-पत्नि के रिश्ते को मजबूत करने के साथ-साथ उनके गुरू ग्रह को भी मजबूत करता है. महिलाओं के 16 श्रृंगारों में मंगलसूत्र एक नाम है. ये एक तरह का पवित्र धातु सोने से निर्मित होते है. जिसे धारण करके शरीर में सकारात्मकता का बोध होता है. मंगलसूत्र महिलाओं को तनाव और स्ट्रैस से दूर रखने में काम भी करता है.