शनिवार व्रत कथा और विधि (Shanivar Vrat Katha and Vidhi) : शनिवार का दिन शनिदेव को समर्पित है। शनिदेव को न्याय का देवता माना जाता है। कहा जाता है कि शनिदेव प्रत्येक व्यक्ति को उनके कर्मों के अनुसार फल देते हैं। शनि को कर्मफलदाता माना गया है। शनिदेव व्यक्ति को बुरे और अच्छे दोनों कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं।
यदि किसी जातक की कुंडली में शनि देव की स्थिति बेहतर हो तो वह अपने जीवन में बहुत ही ज्यादा तरक्की करता है। वहीं दूसरी तरफ यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि देव पीड़ित अवस्था में हो तो उस व्यक्ति को जीवन में बहुत सारे कष्ट झेलने पड़ते हैं। ऐसे में हर व्यक्ति कोशिश करता है कि उनके ऊपर शनिदेव की विशेष कृपा बनी रहे।
शनिदेव की कृपा पाने के लिए और शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार का व्रत बहुत ही ज्यादा लोकप्रिय है। यह व्रत करने से दुख, संकट और पीड़ा दूर हो जाती है। ऐसा माना जाता है कि शनिदेव जब प्रसन्न होते हैं तो घरों में सुख-शांति और समृद्धि का आगमन होता है। आइए जानते हैं कि शनिवार के व्रत का महत्व और व्रत की पूजा विधि तथा कथा के बारे में।
शनिवार व्रत पूजा विधि
शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार का व्रत विधि-विधान से करना बहुत ही आवश्यक है। शनिवार के दिन सबसे पहले सुबह उठकर स्नान करने के बाद स्वच्छ कपड़े पहनना चाहिए। इसके बाद पीपल वृक्ष को जल अर्पित करें। फिर लोहे से निर्मित शनिदेव की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान करवाएं। उसके बाद मूर्ति को चावलों से बनाए गए 24 दल के कमल पर स्थापित करें। उसके बाद काले तिल, फूल, धूप, तेल, काले वस्त्र आदि से शनिदेव की पूजा करें। पूजा करने के बाद शनिदेव के 10 नामों का स्मरण करना बहुत ही शुभ माना जाता है। फिर शनि मंत्रों का जाप करें।
शनिवार व्रत कथा (Shanivar Vrat Katha)
एक समय की बात है जब सभी नवग्रहों यानी सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु में विवाद छिड़ गया कि सबसे बड़ा कौन है? सभी आपस में लड़ने लगे। तभी सभी लोग देवराज इंद्र के पास पहुंचे। देवराज इंद्र घबरा गए और निर्णय करने में अपनी असमर्थता जता दी। लेकिन उन्होंने राजा विक्रमादित्य का नाम सुझाया और कहा कि वह इस समय पृथ्वी पर अति न्याय प्रिय हैं और वह उन सभी की मदद कर सकते हैं।
इसके बाद सभी ग्रह एक साथ राजा विक्रमादित्य के पास पहुंचे और अपनी समस्या रखी। राजा विक्रमादित्य यह देखकर संकट में आ गए। क्योंकि वे जानते थे कि जिस किसी को भी छोटा घोषित किया जाएगा वह क्रोधित हो जाएगा। तब राजा ने एक उपाय बताया। उन्होंने स्वर्ण, रजत, कांस्य, पीतल, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक और लौह से 9 सिहासन बनवाया।
फिर सिंहासन को इसी क्रम में रख दिया और सबसे निवेदन किया कि वह सभी सिहासन पर स्थान ग्रहण करें। इनमें से जो अंतिम सिहासन पर बैठेगा, वही सबसे छोटा माना जाएगा। लोहे का सिंहासन सबसे बाद में होने के कारण शनिदेव उसी पर बैठ गए। तभी से वह सबसे छोटे कहलाने लगे। शनिदेव को लगा कि राजा ने जानबूझकर ऐसा चाल चला है। वह गुस्से में राजा से बोले, राजन! तू मुझे नहीं जानता। सूर्य एक राशि में 1 महीना, चंद्रमा सवा 2 महीना 2 दिन, मंगल डेढ़ महीना, बृहस्पति 13 महीने और बुध तथा शुक्र 1-1 महीने विचरण करते हैं।
लेकिन मैं ढाई साल से साढ़े 7 साल तक एक ही राशि में रहता हूं। मैंने बड़े-बड़े का विनाश किया है। जब श्रीराम की साढ़ेसाती आया तो उन्हें बनवास हो गया। रावण की घड़ी में साढ़ेसाती आई तो उनकी लंका को बंदरों की सेना ने हरा दिया। अब तू क्या चीज है। ऐसा कहते हुए शनिदेव वहां से चले गए।
बाकी सभी देवता खुशी-खुशी वापस आ गए। कुछ समय बीतने के बाद राजा पर शनि की साढ़ेसाती आई। तब शनि देव बढ़िया-बढ़िया घोड़े को लेकर एक सौदागर बनकर वहां पहुंचे। राजा को पता लगते ही उन्होंने अपने सेवक को सबसे अच्छा घोड़ा खरीदने की आज्ञा दे दी। उसने कई अच्छे घोड़े खरीदे। उनमें से एक सर्वोत्तम घोड़े राजा को सवारी के लिए दिया।
राजा के सवार होते ही वह घोड़ा सरपट जंगल की ओर भागने लगा। भीषण वन में पहुंचते ही वह घोड़ा गायब हो गया। इसके बाद राजा जंगल में बिल्कुल ही अकेला, भूखा प्यासा भटकता रहा। तब एक ग्वाले ने राजा को पानी पिलाया। पानी पीकर राजा प्रसन्न हुए और उन्होंने उसे अपनी अंगूठी दे दी। इसके बाद राजा अपने नगर की ओर चल पड़े।
वहां पर उन्होंने अपना नाम उज्जैन निवासी वीका बताया। उस नगर में एक सेठ की दुकान पर उसने कुछ देर आराम किया और भाग्यवश उस दिन सेठ की खूब बिक्री हुई थी तो सेठ खुश होकर उन्हें अपने साथ घर ले गए और राजा को खाना खिलाया। वहां पर वीका ने खूंटी पर एक हार टंगा देखा जिसे खूंटी निगल रही थी। थोड़ी देर में पूरा हार गायब था।
सेठ को लगा कि वीका ने ही उसे चुराया है। उसने वीका को कोतवाल के पास पकड़वा दिया। फिर वहां के राजा ने भी वीका को चोर समझा और हाथ पैर कटवाकर नगर के बाहर फेंकवा दिया। वहां से एक तेली गुजर रहा था। उसे वीका की हालत पर दया आ गया। उसने उन्हें अपनी गाड़ी में बैठाया। इसके बाद राजा की शनिदशा समाप्त हुई।
वर्षा ऋतु आने पर राजा मल्हार गीत गाने लगा और राजा के राग को सुनकर उस नगर की राजकुमारी मनभवानी को उनका गाना बहुत ही पसंद आया। राजकुमारी को उनका गाना इतना पसंद आया कि उन्होंने प्रण ले लिया कि वह उसी राग गाने वाले से विवाह करेगी और उसे ढूंढने के लिए उन्होंने दासी को भेजा। दासी ने पता लगाकर राजकुमारी को बताया कि वह एक अपाहिज है। लेकिन फिर भी राजकुमारी वीका के साथ ही विवाह के लिए अड़ी रही और अनशन पर बैठ गई कि वह विवाह करेगी तो सिर्फ उसी से। इसके बाद राजा ने अपनी राजकुमारी का विवाह उस अपंग राजा से करवा दिया।
1 दिन राजा के स्वप्न में शनिदेव आए और उन्होंने कहा कि देखा राजन। मुझे छोटा बता कर तुम्हें कितना दुख झेलना पड़ा है। इसके बाद राजा ने शनिदेव से माफी मांगी और प्रार्थना करते हुए कहा कि हे शनिदेव! यह दुख किसी और को ना देना। उसके बाद शनिदेव मान गए और कहा कि जो कोई मेरी कथा और व्रत करेगा, उसे मेरी दशा से कोई दुख नहीं खेलना पड़ेगा।
जो व्यक्ति रोज चीटियों को आटा डालेगा, उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होगी। ऐसा कहते हुए शनिदेव ने राजा के हाथ पैर वापस कर दिए। सुबह आंख खुलने पर राजकुमारी ने देखा तो वह बहुत ही चौंक गई फिर वीका ने उसे बताया कि वह कोई और नहीं बल्कि उज्जैन का राजा विक्रमादित्य है। यह जानकर सभी प्रसन्न हुए । सेठ को जब यह बात पता चली तो वह राजा से क्षमा मांगने लगा । राजा ने कहा कि इसमें किसी का दोष नहीं। वह तो शनिदेव का क्रोध था। सेठ ने फिर भी राजा को अपने घर खाने पर साथ जाने का निवेदन किया।
राजा ने सेठ की बात मान ली। उसके बाद सेठ ने कई प्रकार के व्यंजनों से राजा का स्वागत और सत्कार किया। साथ ही सब ने देखा कि जो खूंटी हार निकल चुकी थी, वह अब हार को उगल रही थी। सेठ ने तहे दिल से राजा को धन्यवाद दिया ।
उसके बाद सेठ ने राजा से प्रार्थना की कि वह उनकी कन्या श्रीकंवरी के साथ विवाह करें । राजा ने इसे स्वीकार कर लिया और दोनों ही रानियों मनभवानी और श्रीकंवरी को लेकर उज्जैन नगरी चले गए । उज्जैन में राजा का खूब आदर-सत्कार किया गया। सारे नगर में दीवाली मनाई गई।
राजा ने पूरे नगर में घोषणा की कि मैंने शनिदेव को सबसे छोटा बताया था जबकि वही सर्वोपरि हैं। सारे अच्छे बुरे कर्मों के कारक शनिदेव भी हैं । तबसे सारे राज्य में शनिदेव की पूजा और कथा नियमित रूप से होने लगी । माना जाता है कि जो भी शनिवार का व्रत रखकर शनिदेव की इस कथा को पढ़ता या सुनता है, उनके सारे दुख दूर हो जाते हैं।