हर साल कार्तिक मास की अमावस्या को पूरा भारत दीपावली का त्योहार बड़े हर्षोउल्लास के साथ मनाता है. जब भगवान राम माता सीता के साथ लंका पर जीत हासिल और अधर्म पर धर्म स्थापित कर 14 वर्षों बाद अमावस्या की रात को अयोध्या लौटे थे, तब समस्त अयोध्यावासियों ने अपनी खुशी ज़ाहिर करने के लिए श्रीराम के स्वागत में घी के दीप जलाएं थे. जिससे पूरा अयोध्या दीपों की रोशनी से गुलज़ार हो गया. दीपावली का ये त्योहार आज तक भारत के हर कोने में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है. रात को भगवान की पूजन के दौरान खील-खिलौनों का इस्तेमाल किया जाता है. क्या आप जानते है कि खील-खिलौनों का इतना महत्व क्यों हैं? आइए जानते है.

पूरे भारत में हर किसी का दिवाली मनाने का अंदाज अलग है. हर किसी के यहां अलग परंपराएं हैं. लेकिन पूरे उत्तरी भारत में एक चीज सामान है. वो है दिवाली के पूजन में खील-खिलौने का इस्तेमाल करना. दिवाली पूजन के दौरान इन दोनों को धन की देवी मां लक्ष्मी और श्री गणेश को अर्पित किये जाते हैं. दरअसल, इसके पीछे मान्यता ये है कि भगवान राम के अयोध्या वापिस लौटने पर सबने घी के दिये जलाने के साथ-साथ मिठाईयां भी बांटी थी. लेकिन उस समय आज की तरह अलग-अलग किस्मों की मिठाईयां नहीं थी. इसलिए सब अयोध्यावासियों ने चीनी के बने खिलौने से ही एक-दूसरे का मूंह मीठा कर अपनी खुशी साझा की थी. इसलिए ये प्रथा आज भी प्रचलित है. और आज भी गणेश-लक्ष्मी के पूजन के दौरान उन्हें ये अर्पित किये जाते है.
मां लक्ष्मी को की जाती खील अर्पित-

दिवाली के दौरान धन-वैभव की देवी मां लक्ष्मी की पूजा का भी प्रचलन युगों से है. धन-ऐश्वर्य की देवी होने के कारण पहले के समय में किसान माता को अपनी धान की फसल का कुछ हिस्सा अर्पित किया करते थे. लेकिन बढ़ते समय के साथ-साथ परंपराओं में भी काफी बदलाव आया है. शहरों में रहने वाले लोगों को माता को धान अर्पित करना बेहद कठिन है. इसलिए उसकी जगह दिवाली के शुभ दिन माता लक्ष्मी को खील अर्पित करने की परंपरा प्रचलन में आई.