15 अक्टूबर से इस साल की शारदीय नवरात्रि की शुरूआत होने जा रही है. नवरात्रि के नौ दिन माता रानी के नौ स्वरूपों को समर्पित होते हैं. जो सशक्त नारी शक्ति का प्रतीक माने जाते हैं. जगह-जगह पर मैया रानी के पंडालों को सजाया गया है. साथ ही, नवरात्रि के शुभ अवसर पर देशभर के सभी मंदिरों में खासतौर से माता के 51 शक्तिपीठों में अलग ही रौनक देखने को मिलती है.

मातारानी के दर्शन के लिए भक्तों की लंबी कतारें देखने को मिलती है. पूरे देश में अलग चमक होती है. माता के दर्शन के साथ साथ भैरव बाबा के पूजन की भी परंपरा चली आ रही है. अष्टमी और नवमी के दिन कन्या पूजन के साथ भैरव बाबा के रूप में एक लड़के को भी बैठाया जाता है. आइए जानते है भैरव बाबा को पूजने के पीछे का कारण…
प्रचलित पौराणिक कथाओं के मुताबिक, भैरवनाथ को भगवान शिव का अंश कहा जाता है. माना जाता है कि भैरव की उत्पत्ति भोलेनाथ के क्रोध के कारण उनके रक्त से हुई है. इसके पीछे ये कथा है कि एक समय सृष्टि को बनाने वाले और संभालने वाले त्रिदेव यानी ब्रह्म, विष्णु और महेश में अपनी श्रेष्ठता को लेकर बहस छिड़ गई थी. जिसके चलते उन्होंने अन्य देवताओं से राय ली. विष्णु और महेश यानी भगवान शिव बाकी देवताओं की बात सुनी. लेकिन ब्रह्म देव उनसे सहमत नहीं हुए.

इस बात से क्रोध में आकर ब्रह्मा जी ने भगवान शिव को अपशब्द कहें. इस बात से क्रोधित होकर भोलेनाथ ने अपना प्रकोप रूप धारण कर लिया. भोलेनाथ के इस प्रचंड रूप को देखकर समस्त देवगण भय में आ गए. महेश के इस क्रोध से ही भैरव बाबा का जन्म माना गया है. शिवपुराण में कहा गया है कि महादेव के रक्त से कृष्णपक्ष की अष्टमी को भैरवबाबा का जन्म हुआ था. इसलिए नवरात्रि के दिनों में भैरव बाबा के पूजन की मान्यता है.
इसके अलावा भैरव बाबा को पूजे जाने के पीछे ये मान्यता भी चलती आ रही है कि भैरवनाथ से बचते हुए भगवती दुर्गा ने पर्वतों पर स्थित गुफा में शरण ले ली थी. इस गुफा में छिपकर मातारानी ने नौ महीनों तक कठोर तपस्या की थी. इसलिए इस गुफा का नाम गर्भजून गुफा है. जो वैष्णोंदेवी में स्थित है. लेकिन माता की तपस्या के दौरान भैरवबाबा ने उन्हें ढ़ूंढ़ लिया था. जिसके बाद भैरव माता पर अपनी शक्तियों से प्रहार करने लगा. तब क्रोध में आकर माता ने भैरवनाथ का वध कर दिया.

वध के पश्चात भैरव को अपनी गलतियों का एहसास हुआ और मातारानी से इसकी क्षमा मांगी. जिससे प्रसन्न हो माता ने उसे अपने साथ पूजे जाने का आशीर्वाद दे दिया.