शारदीय नवरात्रि का हर किसी को बेसब्री से इंतज़ार रहता है. हर जगह मैयारानी के विशाल और भव्य पंडाल सजे होते है. नवरात्रि के ये पर्व मां दुर्गा के नौ रुपों को समर्पित है. हर दिन मैया के अलग अलग स्वरूपों को पूजे जाने का विधान है. ऐसे में नवरात्रि के तीसरे दिन मातारानी के तीसरे स्वरूप यानी चंद्रघंटा स्वरूप को पूजा जाता है. मातारानी के पहले और दूसरे रूप यानी शैलपुत्री और ब्रह्मचारिणी की तरह ये रूप भी नारी शक्ति का प्रतीक माना जाता है. माता चंद्रघंटा को महिषासुरमर्दिनी भी कहा जाता है. साथ ही, माता के मस्तिष्क पर अर्धचंद्रमा बने होने के कारण माता को चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है. आइए जानते है माता के चंद्रघंटा रूप के पीछे की पौराणिक कथा के बारे में.

पौराणिक कथा के अनुसार माता दुर्गा ने असुर कुल के विनाश के लिए चंद्रघंटा का रूप धारण किया था. कहा जाता है कि एक बार महिषासुर नामक असुर का अहंकार और आतंक अधिक बढ़ गया था. जिसके चलते देवगण और असुरों के बीच घातक युद्ध छिड़ गया. महिषासुर देवराज इंद्र का सिंहासन प्राप्त करना और समस्त स्वर्गलोक पर अपना आधिपत्या जमाना चाहता था. सभी देवगण ने इस बात से परेशान होकर त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश का आह्वान किया. देवताओं की ये बात सुन त्रिदेव क्रोधित हो उठें. जिससे उनके मुख से निकली ऊर्जा से माँ दुर्गा का एक स्वरूप प्रकट हुआ. देवी के अवतरित होते ही सभी देवताओं ने मिलकर उन्हें अपने अस्त्र-शस्त्र दिए.
जिसमें भगवान शंकर ने देवी को अपना त्रिशुल दिया, विष्णुजी ने अपना सुदर्शन चक्र दिया, देवराज इंद्र ने अपना घंटा दिया, सूर्य ने तेज दिया. इसके साथ वाहन सिंह दिया. इन सब चीजों के बाद माता कहलाई चंद्रघंटा.

माता चंद्रघंटा की उत्पत्ति दुष्टों का संहार कर धर्म की स्थापना करने के लिए की गई थी. इन सबके बाद माता ने ये सब चीजें धारण कर दैत्य राज महिषासुर का वध कर समस्त देव लोक और स्वर्ग लोग की रक्षा की. यहीं कारण है कि माँ का जो भी भक्त उनकी सच्चे दिल से उपासना करता है. उसे माँ वीरता और निर्भयता के साथ विनम्रता का आशीर्वाद देती है.