इस साल के शारदीय नवरात्रि के नौ दिनों की शुभ शुरूआत 15 अक्टूबर 2023 से होने जा रही है. इन नौ दिनों में माँ दूर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना की जाती है. जो सशक्त नारी शक्ति का प्रतीक होते हैं. देशभर में नवरात्रि की धूम महीनों पहले से देखने को मिलती है.जगह-जगह माता के भव्य पंडाल नवरात्रि की शान बढ़ा देते है. तो आज हम बात करेंगे माँ दूर्गा के नौ स्वरूपों में से सर्वप्रथम स्वरूप की.

नवदुर्गाओं में माता का प्रथम स्वरूप माँ शैलपुत्री को माना गया है. हिंदु मान्यताओं के अनुसार, शैलपुत्री माता पार्वती का ही रूप है. राजा दक्ष के महल में अग्नि में सती होने के बाद माता का दूसरा जन्म पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में हुआ था. जिसके बाद पर्वत राज हिमालय की गोद में जन्मी शांत और सरल स्वभाव की ये माता शैलपुत्री कहलाई. माता ने दूसरा जन्म लेने के बाद भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए उन्होंने सालों कठोर तपस्या की थी. जिसके बाद भोलेनाथ ने प्रसन्न होकर माता को अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया था.
पर्वतराज की पुत्री होने के कारण माता पार्वति को शैलपुत्री कहा जाने लगा. माता शैलपुत्री अखंड सौभाग्य की प्रतीक मानी जाती हैं. मां जितनी शांत और सरल स्वभाव की हैं, उतनी की राक्षसों का संहार करने वाली है. इसलिए माता को शांति की मूरत और भय का नाश करने वाली देवी भी कहा जाता है. जिस वजह से नवरात्रि के प्रथम दिन माता दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री को पूजा जाता है.

माता शैलपुत्री के दाय हाथ में त्रिशुल है और बाय हाथ में कमल सुशोभित है. इसके अलावा माता का वाहन वृषभ को माना जाता है. जिसकी वजह से माता को वृषारूढ़ा कहकर भी पुकारा जाता है.