हिन्दू धर्म में अधिकमास का काफी महत्व माना गया है. सावन के दौरान आने वाला मलमास भगवान विष्णु को पूर्णरूप से समर्पित है. भगवान विष्णु को अच्युत, जनार्दन, हरि, अनंत पुरुषोत्तम जैसे कई सारे नामों से जाना जाता है. इनके हर एक नाम की अपनी अलग महिमा है. चलिए आज हम जानते है कि क्यों पड़े भगवान विष्णु के इतने नाम? इसके साथ हम जानेंगे कि भगवान विष्णु को नारायण क्यों कहा जाता है?

पूरषोत्तम नाम का अर्थ
“पूरषोत्तम” यह नाम अपने आप में ही समझा रहा है कि “पुरुषों में सर्वश्रेष्ठ”. भगवान विष्णु का नाम पुरुषोत्तम है. यानि कि उन्हें पुरुषों में सबसे बड़ा दर्जा प्राप्त है.

अच्युत नाम
भगवान विष्णु को अच्युत होने का भी दर्जा प्राप्त है. यानि कि कभी न नष्ट होने वाला और जो अमर हो. भगवान विष्णु को अमरता का वरदान मिला है. इसलिए उन्हें अच्युत भी कहा जाता है.

हरि का अर्थ
भगवान विष्णु का कार्य जगत का संचालन करना है. इसलिए इन्हें जगत का पालनकर्ता कहा गया है. जो सभी के दुख हरते हैं. यही कारण है कि भगवान विष्णु को हरि भी बोला जाता है.

विष्णु का अर्थ
कमल जैसे नयन हैं जिनके, जो हैं कौस्तूकमणी और चतुरभूजी से सुशोभित, वो है “विष्णु”.
नारायण कैसे पड़ा नाम
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, देव ऋषि नारद भगवान विष्णु को नारायण कहकर पुकारते थे. जल का प्रयायवाची नीर होता है और संस्कृत की काफी परिस्थितियों में अमीर को नर कहा जाता है. जिसके समावेश के बाद शाब्दिक अर्थ है, जल जिसका अधिष्ठान यानि कि रहने का स्थान है. भगवान विष्णु बैकुंठ धाम में क्षीरसागर की गहराई में निवास करते हैं. यही कारण है कि नारद मुनि उन्हें नारायण कहा करते थे.