जब भी हम श्रीकृष्ण के बारे में ख्याल करते हैं, तो हमारे मन में उनकी मन मोह लेने वाली आकृति आती है. हाथों में बासुरी से लेकर उनके सर पर मुकुट के साथ मोरपंख, हर चीज की अपनी विशेषता है. बिना बासुरी और मोरपंख के हम कान्हा का ख्याल ही नहीं कर सकते. यहाँ तक कि अधिकांश कथाओं में और तस्वीरों में कान्हा को मोरपंख के साथ ही देखा जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर श्रीकृष्ण हमेशा ही अपने मुकुट में मोरपंख को क्यों धारण किया करते थे? चलिए जानते हैं.
हिन्दू धर्म में कृष्ण भगवान के अलग-अलग स्वरूप हैं. किसी के लिए वह बालक हैं, तो किसी के लिए वह द्वारकाधीश हैं. किसी के लिए वे उनके प्रेमी हैं, तो किसी के लिए वे तारानहार. लेकिन इन सबमें कृष्ण की एक बात सामान्य है. वो हैं दूसरों के लिए निःस्वार्थ प्रेम और मासूम सा नटखट स्वभाव. कृष्ण को बहुत सारे नामों से जाना जाता है. कान्हा, लड्डू गोपाल, गोविंद, माधव, बंसीवाला, मोरपंखधारी जैसे न जाने और कितने नामों से कान्हा को पुकारा जाता है. कृष्ण की कहानियों में उनके स्वरूप, नटखटपन और चरित्र के बारे में खूब बखान मिलता है. बचपन से ही श्रीकृष्ण को माँ यशोदा ने मोरपंख में ही सजा कर रखा था.

राधा से प्रेम की निशानी है ‘मोरपंख’
कान्हा के पास मोरपंख का होना राधा से उनके अटूट प्रेम की निशानी माना जाता है. मान्यताओं के अनुसार, एक बार कृष्ण की बांसुरी पर राधा नृत्य कर रहीं थी. तभी उनके साथ महल में मोर भी नाचने लगे. इस दौरान एक मोर का पंख नीचे गिर गया. तब श्री कृष्ण ने इसे अपने माथे पर सजा लिया था. उसी के बाद से मोरपंख को उन्होंने राधा के प्रेम के प्रतीक के रूप में माना. जिसे वे सदा अपने से लगाकर रखते हैं. यही कारण है कि आज भी श्रीकृष्ण की प्रतिमा भी बिना मोरपंख के नहीं दिखेगी.
कालसर्प योग की वजह से ‘मोरपंख’
सदियों से कहा जाता है कि मोर और सांप की दुश्मनी है. यही वजह है कि कालसर्प योग में मोरपंख को साथ रखने की सलाह दी जाती है. मान्यता है कि श्रीकृष्ण पर भी कालसर्प योग था. कालसर्प दोष का प्रभाव कम करने के लिए भी भगवान कृष्ण पर माँ यशोदा हमेशा मोरपंख लगाया करती थी.
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श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम शेषनाग के अवतार थे. मोर और नाग को एक-दूसरे का दुश्मन माना गया है लेकिन कृष्ण जी के माथे पर लगा मोरपंख यह संदेश देता है कि वह शत्रु को भी विशेष स्थान देते हैं.