पूरे भारत में शारदीय नवरात्रि की धूम जारी है. नवरात्रि के नौ दिन माँ दुर्गा के नौ अलग रूपों को समर्पित होते है. उन नौ रुपों में से माँ का एक रूप है काली का. जिन्हें माँ कालरात्रि के नाम से जाना जाता है. नवरात्रि की सप्तमी तिथि माँ कालरात्रि का दिन होता है. सिर पर बिखरे लंबे बाल, भुजाओं में कांटों की तलवार, मुँह से निकलती ज्वाला, माँ दुर्गा का ये रूप अत्यंत भयानक और डरा देने वाला है. माँ के इस रूप से राक्षस थर-थर काँपते हैं. जब भी हर कोई माँ काली की प्रतिमा देखता है, तो उसे देख सबके मन में एक सवाल खड़ा होता है कि आखिर माँ की जीब बाहर क्यों निकली होती है? आइए जानते है इसके पीछे की पौराणिक मान्यता..

काली माँ जितना राक्षसों और नकारात्मक शक्तियों के लिए विकराल और विभत्स है, उससे कई ज्यादा अपने भक्तों के प्रति दयालु और उदार है. जो भी माँ की सच्चे मन से उपासना करता है, उसे माँ कालरात्रि अवश्य फल देती है. इसलिए माता को शुभंकरी भी कहा जाता है. दानवों के बढ़ते अत्याचारों के कारण माता दुर्गा ने उनका संहार करने के लिए ये विकराल रूप धारण किया था.
हिंदू धर्म के पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, रक्तबीज नाम के असुर और देवताओं के बीच भीषण युद्ध छिड़ा हुआ था. इस युद्ध के दौरान देवताओं के रक्तबीज पर प्रहार करने से उसका रक्त जहाँ भी गिरता वहाँ उसके जैसे कई सारे असुर उत्पन्न हो गए. भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रक्तबीज ने कड़ी तपस्या की थी. जिससे प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने उसके मांगने पर ये आशीर्वाद दे दिया कि उसका रक्त जहाँ कहीं भी गिरेगा, वहीं उसके जैसे दैत्यों की उत्पत्ति हो जाएगी. ऐसे में देवताओं के लिए इस असुर को हराना काफी मुश्किल हो गया. तब सभी देवगण भगवान शिव के पास मदद की गुहार लगाते हुए पहुँचें.

देवताओं की बात सुन महादेव ने माता शक्ति का रूप देवी पार्वती से रक्तबीज का संहार करने की विनती की. जिसके बाद माता पार्वती ने माँ कालरात्रि का विकराल रूप धारण किया और रक्तबीज असुर का संहार कर दिया. रक्तबीज पर प्रहार करने के कारण उसके शरीर से खून निकलने लगा. जैसे ही खून धरती पर गिरने लगा. उससे पहले माँ काली ने उसके रक्त को अपने कपाल में भर लिया और जगत कल्याण के लिए वो सारा खून माँ ने स्वयं पी लिया.
ये रक्त पीते ही माँ काली ने अति विकराल रूप धारण कर लिया. उनके इसी क्रोध को शांत करने के लिए भोलेनाथ माँ के चरणों में आकर लेट गए. माँ का जब क्रोध शांत हुआ. अपने स्वामी को चरणों में देख माँ को पश्चाताप हुआ और संकुचित मन से उन्होंने अपनी जीभ निकाल ली.