भारत में लाखों की संख्या में कई पुराने-नए मंदिर है. उत्तर-पूर्व, दक्षिण-पश्चिम चारों ओर भारत मंदिरों से घिरा हुआ है. भारत में मंदिरों का काफी पौराणिक इतिहास है. उन ही कुछ ऐतिहासिक मंदिरों में से दक्षिण भारत के आंध्रप्रदेश में स्थित तिरूपति बालाजी का मंदिर है. जो एक विश्व विख्यात मंदिर है. ये एक प्रमुख तीर्थ स्थल है, जो सदियों से भक्तों की आस्था का कंद्र बना हुआ है. देश ही नहीं बल्कि दुनिया के कोने-कोने से भी इस मंदिर में भक्त बालाजी के सामने अपनी मन्नत लेकर आते हैं. इस मंदिर की गिनती सबसे अमीर मंदिरों में की जाती है. यहां पर मन्नत पूरी होने पर बाल दान देने की परंपरा है. आइए जानते है कि आखिर क्यों भक्त यहां अपने बाल दान करते हैं? और यहां मुंडन कराने की प्रथा क्यों है.
तिरूपति बालाजी भगवान विष्णु के अवतार श्री वैंकटेश्र्वर को समर्पित है. इस मंदिर में सदियों से बाल दान की मान्यता है. कहा जाता है कि जो भी भक्त यहां भगवान को अपने बाल अर्पित करता है, उसके बदले भगवान उसे 10 गुना धन लौटाते हैं.

बाल दान के पीछे की पौराणिक कथा-
प्रचलित पौराणिक कहानियों के अनुसार, प्राचीन काल में भगवान वैंकटेश ने धन के देवता कुबेर से ऋण लिया था. क्योंकि उन्हें देवी पद्मावती से विवाह करना था और पहले के समय वर को शादी के दौरान कन्या के परिवार को एक तरह शुल्क देने की परंपरा थी. जिसके बाद ही विवाह किया जाता था. इस शुल्क को देने में वैंकटेश्वर असमर्थ थे. जिसके चलते उन्होंने कुबेर से ऋण लिया और उन्हें ये वचन दिया कि कलयुग के अंत तक मैं मेरे भक्तों समेत आपका सारा ऋण चुका दुंगा. उन्होंने ये कहते हुए आगे कहा कि जो भी भक्त मेरा ये ऋण चुकाने में मेरी सहायता करेगा, तो उसे मां लक्ष्मी दस गुना से ज्यादा धन देंगी. इस कारण तभी से भक्त पूरी आस्था से अपने बाल भगवान वैंकटेश्वर को दान में देते हैं.