क्या आप जानते हैं संसार का पहला कांवड़िया कौन था?

संसार का पहला कांवड़िया

इस साल के सावन महीने की शुरुआत हो चुकी है. सावन महीना साल का सबसे पावन महीना माना जाता है. साथ ही यह हिंदु धर्म का सबसे प्रसिद्ध त्योहार भी है. आमतौर पर सावन का महीना हर साल एक महीने का होता है. लेकिन इस साल यह पर्व दो महीनों का होगा. आपको बता दें कि इस साल सावन महीने की शुरुआत 4 जुलाई होने जा रही है. सावन शुरू होते ही शिव भक्तों के बड़े-बड़े गुट पैदल यात्रा के लिए निकल जाते हैं, जिन्हें कांवड़िया कहा जाता है. यह कांवड़िए हरिद्वार, गंगोत्री जैसे पवित्र तीर्थ स्थलों से अपनी कावड़ में गंगाजल भरकर लाते हैं और फिर उस जल को शिवलिंग पर चढ़ाते हैं.

मान्यता है कि जो शिव भक्त शिवरात्रि तक भगवान भोलेनाथ की शिवलिंग पर यह जल चढ़ाता हैं तो उसकी हर मनोकामना पूरी होती है. लेकिन, क्या आपने कभी यह सोचा है कि संसार का सबसे पहला कावड़िया कौन रहा होगा? किसने इस पवित्र यात्रा की शुरुआत की होगी? चलिए जानते हैं…

देश में सभी जगह से अलग-अलग गुटों के लोग कावड़ यात्रा के लिए पैदल निकलते हैं. इस साल भी यह यात्रा 4 जुलाई से सावन के शुरू होने के साथ होगी और इसका समापन 15 जुलाई 2023 को होगा. जबकि सावन इस साल 2 महीने यानी 59 दिनों का है. पिछले दो दशकों से कांवड़ यात्रा की काफी लोकप्रियता बढ़ी है और अब समाज का हर छोटे से बड़ा वर्ग कांवड यात्रा में शामिल होने लगे हैं. लेकिन सबसे पहला कांवडिया कौन था? इसे कम लोग ही जानते हैं. आपको बता दें कि इसे लेकर कई मान्यताएं हैं-

भगवान परशुराम थे पहले कावड़ियाँ?

कुछ विद्वानों का कहना है कि सबसे पहले कावड़ियाँ भगवान परशुराम थे. कहा जाता है कि परशुराम ने उत्तर प्रदेश के बागपत के पास स्थित ‘पुरा महादेव’ का कांवड़ से गंगाजल लाकर जलाभिषेक किया था. परशुराम, इस प्रचीन शिवलिंग का जलाभिषेक करने के लिए गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जी का जल लाए थे. आज भी इस परंपरा का अनुपालन करते हुए सावन के महीने में गढ़मुक्तेश्वर से जल लाकर लाखों लोग ‘पुरा महादेव’ का जलाभिषेक करते हैं. गढ़मुक्तेश्वर का वर्तमान नाम ब्रजघाट भी है.

Bhagwan Parshuram

श्रवण कुमार थे पहले कावड़ियाँ!

वहीं कुछ लोगों का कहना है कि सबसे पहले त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने पहली बार कांवड़ यात्रा की थी. कहा जाता है कि श्रवण कुमार के माता-पिता अंधे थे. एक बार श्रवण कुमार के माता पिता ने उनसे हरिद्वार में गंगा स्नान की इच्छा जाहिर की थी. जिसके बाद श्रवण कुमार ने उन्हें कावड़ में बैठाकर हरिद्वार की यात्रा करवाई और साथ ही गंगा स्नान कराया और अपने साथ वह गंगाजल भी लेकर गए. तभी से कावड़ यात्रा की शुरुआत हुई.

रावण को भी माना जाता है पहला कांवड़िया!

पुराणों के अनुसार, कांवड़ यात्रा की शुरुआत की कहानी समुद्र मंथन से जुड़ी है. जब देवों और असुरों के बीच समुद्र मंथन हो रहा था उस दौरान उससे निकला विष महादेव ने पी लिया था. जिसके कारण उनका पूरा कंठ नीला पड़ गया था, इससे वह नीलकंठ कहलाए. इस विष के ग्रहण के बाद महादेव को नकारात्मक शक्तियों ने घेर लिया. महादेव को इन शक्तियों से मुक्त कराने के लिए उनके परम भक्त रावण ने ध्यान किया. उसके बाद कावड़ में गंगा जल भरकर रावण ने ‘पुरा महादेव’ स्थित शिवमंदिर में शिवजी का जल अभिषेक किया. माँ गंगा के पवित्र जल से भोलेनाथ के शरीर से नकारत्मक प्रभाव दूर हो गए. यहीं से भी कावड़ यात्रा की शुरुआत की मान्यता है.

देवताओं ने भी किया महादेव का जलाभिषेक

कुछ मान्यताएँ यह भी है कि समुद्र मंथन से निकले हलाहल के नकारात्मक शक्ति को कम करने के लिए शिवजी ने शीतल चंद्रमा को अपने माथे पर धारण किया था. जिसके बाद सभी देवता शिवजी पर गंगाजी से जल लाकर उनपर अर्पित करने लगे. इसलिए यह भी मान्यता है कि सावन मास में कांवड़ यात्रा का प्रारंभ यहीं से भी हुआ.