राम-सीता कब बंधे थे विवाह के बंधन में? क्यों नहीं होते इस दिन मांगलिक कार्य?

राम-सीता कब बंधे थे विवाह के बंधन में? क्यों नहीं होते इस दिन शादी-ब्याह जैसे मांगलिक कार्य?

मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन विवाह पंचमी मनाने का विधान होता है. शादी विवाह जैसे कार्य हिंदु धर्म के लोगों के लिए बहुत ख़ास होते हैं, क्योंकि इसी तरह भगवान राम और माता सीता विवाह के बंधन में बंधे थे. कहा जाता है कि जो लोग इस दिन यानि कि पंचमी तिथि के दिन राम और सीता का विवाह पूरे अनुष्ठान, पूजा-पाठ, विधि-विधान के साथ करते हैं, उनके दांपत्य जीवन में आई हर परेशानियों से उन्हें छुटकारा मिलता है.

कुंवारी कन्याएं एक अच्छे योग्य वर की प्राप्ति के लिए इस शुभ दिन पर उपवास रखकर सीता-राम की पूजा-अर्चना करती हैं. गौर करने वाली बात यह है कि यह दिन वैसे तो बहुत मंगलकारी है लेकिन इस दिन शादी-ब्याह जैसे मांगलिक कार्यक्रम नहीं किए जाते हैं. तो आइए जानते हैं कि आखिर ऐसा क्यों होता है?

इस पंचमी पर क्यों नहीं होते विवाह?

भगवान राम और माता सीता को आदर्श पति-पत्नी कहा जाता है. आपको बता दें कि विवाह पंचमी के दिन ही श्रीराम ने मां सीता के साथ विवाह रचाया था. विवाह के बाद जनक दुलारी सीता जी का जीवन दुविधाओं से भर गया था. वहीं उन्हें हर कदम पर पीड़ा झेलनी पड़ी थी. शादी के बाद उन्होंने अपने पति श्रीराम के साथ अपने 14 साल वन में बिताए.

राम-सीता कब बंधे थे विवाह के बंधन में? क्यों नहीं होते इस दिन शादी-ब्याह जैसे मांगलिक कार्य?

विवाह के बाद कैसे बीता माता सीता का जीवन?

देवी सीता ने हमेशा पत्नी धर्म निभाकर हर बड़ी परेशानियों का सामना किया था. अपना पत्नी धर्म निभाते-निभाते विवाह के कुछ दिनों बाद से ही राजा दशरथ के महल में जन्मी सीता ने अपनी शादी-शुदा जीवन में काफी मुश्किलों का सामना किया. वनवास के दौरान लंकापति रावण द्वारा सीता का अपहरण कर लिया गया. यहां उन्हें पति से वियोग का दर्द सहन करना पड़ा था.

श्रीराम ने लंका पर जीत हासिल करके माता सीता को रावण के चुंगल से छुड़ा लिया था, पर इसके बाद उन्होंने माँ सीता का परित्याग कर दिया था. अपने आपको सही सिद्ध करने के लिए देवी को अग्निपरीक्षा भी देनी पड़ी थी. गर्भवती होने के दौरान देवी सीता को महर्षि वाल्मीकि ने अपने यहाँ पनाह दी थी. वाल्मीकि जी की कुटिया में ही माता सीता ने अपने दोनों पुत्र लव-कुश को जन्म दिया था.

इन्हीं सबके चलते माता सीता ने अपने वैवाहिक जीवन में काफी दुख-दर्द व कष्ट को झेला. इसी कारण इस दिन लोग अपनी पुत्री की शादी नहीं करते हैं. लोग यह मानते हैं कि अगर वो भी इस दिन अपनी बेटियों की शादी करेंगे तो शायद उनकी बच्चियों को भी माता सीता के सामान पीड़ा झेलनी पड़ सकती है.