शनिदेव का दिन शनिवार को माना जाता है। इन्हें सबसे क्रूर ग्रह माना जाता है। शनिदेव लोगों के कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं। इसलिए शनिदेव को कर्म फलदाता भी कहा जाता है। बुरे कर्म करने वालों पर शनिदेव जितना क्रूर दृष्टि रखते हैं, उतना ही सौम्य दृष्टि अच्छे और उचित आरचण वाले व्यक्तियों पर रखते हैं।
सूर्यदेव को शनिदेव का पिता माना जाता है। लेकिन इससे बावजूद कथाओं में वर्णित है कि शनिदेव और सूर्यदेव के बीच हमेशा विवाद रहा। शनिदेव अपने पिता सूर्यदेव से नफरत करते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि आखिर शनिदेव अपने पिता सूर्यदेव से नफरत क्यों करते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, सूर्यदेव का विवाह दक्ष की पुत्री संज्ञा से हुआ था। विवाह के बाद दोनों के मनु, यमराज और यमुना नाम से तीन संतानें उत्पन्न हुई। लेकिन सूर्य के प्रकाश से संज्ञा हमेशा विचलित रहती थी।
इस समस्या के समाधान के लिए राजा दक्ष की पुत्री संज्ञा अपने पिता से मिलने पहुंची। संज्ञा की व्यथा को सुनकर राजा दक्ष ने उसे वापस सूर्यलोक जाने के लिए कहा और यह भी कहा कि वही तुम्हारा घर है। इसके बाद संज्ञा ने सूर्यदेव से दूर रहकर तपस्या करने का विचार किया। संज्ञा ने अपनी ही जैसी छाया नाम की एक हमशक्ल बना दी। छाया पर सूर्य के तेज का प्रभाव नहीं पड़ता था।
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कुछ समय के बाद सूर्यदेव और छाया की तीन संतानें हुई। तपती, भद्रा और शनि। छात्रा का पुत्र होने के कारण शनिदेव का रंग सांवला था। जिसके चलते सूर्यदेव ने शनि को अपना पुत्र मानने से इंकार कर दिया। इससे क्रोधित होकर शनिदेव ने अपनी कुदृष्टि सूर्यदेव पर डाली। इससे सूर्यदेव का रंग काला पड़ गया।
सूर्यदेव अपना शापित चेहरा लेकर भगवान शंकर के पास गए। तत्पश्चात भगवान शंकर ने सूर्यदेव को वास्तविकता से अवगत कराया। इसके बाद सूर्यदेव को अपने गलती का आभास हुआ और छाया से माफी मांगी। इसके बाद से ही शनिदेव और सूर्यदेव के बीच कभी भी नहीं बनी और शनिदेव अपने पिता से नफरत करने लगे। ज्योतिष शास्त्र में माना जाता है कि आज भी किसी घर में सूर्य और शनि एक स्थिति में होते हैं तो उस घर में बाप-बेटे में अनबन हो जाती है।