सनातन धर्म में धार्मिक कार्यों में कलश रखने का विशेष महत्व है। अगर आप मांगलिक कार्य कर रहे हों या नया व्यापार कर रहे हों। इसी के साथ नए साल का आरंभ, गृह प्रवेश, दिवाली पूजन, यज्ञ-अनुष्ठान, दुर्गा पूजा आदि के अवसर पर विशेष कलश स्थापना की जाती है। कलश का महत्व हिंदू धर्म में अत्यधिक है। यह एक प्रतीक है जो प्राचीन भारतीय संस्कृति, परंपरा, और धार्मिक अनुष्ठानों को प्रतिष्ठित करता है। कलश में जल, पूजा सामग्री, या स्वयं देवता का वास माना जाता है। इसके अलावा, कलश को महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इसे शुभता और समृद्धि के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। यह प्रार्थनाओं, ध्यान, और पूजा के समय में उपयोग किया जाता है ताकि शुभ और सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित किया जा सके।
भगवान का आवास होता है कलश
ऐसा माना जाता है कि कलश के मुख पर भगवान विष्णु, कंठ में भगवान शिव और मूल में ब्रह्मा जी का स्थान होता है। इसलिए हिन्दू धर्म के धार्मिक रीति रिवाजों में कलश की स्थापना होती है। कलश का स्थापना करने का कारण धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं में समाहित है। इसका स्थापना करने से धार्मिक अनुष्ठानों को पूरा किया जाता है और मंत्रों और अनुष्ठानों के साथ इसकी प्रतिष्ठा की जाती है। यह भी एक तरीका है, जिससे भगवान या देवता का आवास बनाया जाता है, जिससे साधक अपनी पूजा और भक्ति को समर्पित कर सकता है।
आम के पत्ते और नारियल रखा जाता है
कलश के संबंध में मान्यता है कि ये सभी तीर्थों का प्रतीक होता है। कलश में सभी देवी-देवताओं की मातृ शक्तियां होती हैं, इसके बिना पूजा-पाठ पूर्ण नहीं हो पाती हैं। कलश को प्रचुरता और जीवनदायी ऊर्जा का पात्र बनाता है। कई हिंदू अनुष्ठानों में विशेष रूप से बच्चे के जन्म और शादियों से संबंधित समारोहों के दौरान कलश को बर्तन पर सजाया जाता है और उसके ऊपर आम के पत्तों के साथ एक नारियल रखा जाता है।
बिना कलश के पूजा नहीं होती सफल
इस साल चैत्र नवरात्रि का प्रारंभ 9 अप्रैल दिन मंगलवार से हुआ है, नवरात्रि के प्रथम दिन कलश स्थापना करते हैं और मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा करते हैं। नवरात्रि में कलश स्थापना का विशेष महत्व है। इसके बिना नवरात्रि के 9 दिनों की पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती है। यह कलश पहले से लेकर 9वें दिन तक रखा जाता है और दशमी के दिन उसका विसर्जन करते हैं।
इन पूजा में खास कलश रखना अनिवार्य होता है
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु के नाभि से संसार की उत्पत्ति हुई है। पौराणिक कथाओं में समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश प्राप्त हुआ था और लक्ष्मी जी भी हाथ में सोने का कलश लिए हुए अवतरित हुई थी। माता लक्ष्मी को धन और वैभव की देवी माना जाता है। माता लक्ष्मी भगवान विष्णु की पत्नी है। कलश सुख समृद्धि का प्रतीक होता है। इसलिए किसी भी पूजा सत्यनारायण पूजा, नवरात्रि पूजा में कलश रखना अनिवार्य होता है।