भारत कई रहस्यमयी घटनाओं और स्थानों की पृष्ठभूमि है. यहां काफी प्राचीन मंदिरों, तालाबों, पर्वतों का इतिहास आजतक गोपनीय है. उन्हीं में से आज हम बात करने जा रहे हैं एक ऐसे झरने की जहां का पानी स्वयं ही तपता है. गर्मी की तपती धूप के साथ-साथ कड़ाके की ठंड में भी इस झरने का पानी अति उष्म होता है. आइए जानते है इसके पीछे का रहस्य.
हिमाचल के कुल्लू जिले स्थित पार्वती नदी की घाटी पर मौजूद मनिकर्ण साहिब गुरूद्वारा देश-विदेश में काफी विख्यात है. इस जगह की खासियत ये है कि यहां भगवान शिव के मंदिर के साथ गुरूद्वारा भी है. जिसका लंगर शिव जी के उस तपते हुए झरने में भी तैयार किया जाता है जिसकी अभी हम बात कर रहें थे.

बर्फ की तरह जमती हुई अति शीतल पार्वती नदी, शिव जी का उबलता हुआ झरना और इसके तट पर स्थित ये मनिकरण साहिब गुरुद्वारा अपनेआप में ही लोगों के आकर्षण का कंद्र बना हुआ है. जिस प्रकार माता पार्वति अपने अति सौम्य स्वभाव और भगवान शिव अपने रौद्र रूप के लिए जाने जाते हैं. ठीक उसी प्रकार मणिकरण साहिब का तपता झरना और बहती हुई पार्वती नदी उनका बोध कराती है.
इस तपते झरने के पीछे प्रचलित पौराणिक मान्यता ये है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए यहां करीब 11 हजार सालों तक की कठोर तपस्या की थी. इसी दौरान यहां पर माता पार्वती की मणि यानी की रत्न पानी में गिर गई थी. जिसको लेकर भगवान शिव ने अपने शिष्यों को उस मणि को ढ़ूंढ़ लाने को कहा. परंतु वे सब नाकामयाब रहे. इस बात भोलेनाथ क्रोधित हो गए. जिससे उनकी प्रलयकारी तीसरी आँख खुल गई. तीसरी आँख खुलने के बाद जो शिव जी के पास नैना देवी शक्ति प्रकट हुई. उसने ये बताया कि माता पार्वती की मणि पाताल लोक में शेषनाग के पास है. शेषनाग से मणि का छिन जाना उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं आया. जिस कारणवश शेषनाग ने क्रोध में आकर एक फुंकार लगाई. उससे गर्म पानी की धारा शुरू हुई.