ईश्वर की आराधना के कई अनूठे तरीके हैं, जिनमें से एक प्रमुख तरीका है “परिक्रमा”। परिक्रमा का अर्थ है अपने आराध्य के चारों ओर गोल घूमना और उनकी कृपा प्राप्त करना। हालांकि, शिवलिंग की परिक्रमा करते समय कुछ विशेष नियमों का पालन करना आवश्यक है। कहा जाता है कि शिवलिंग के चारों ओर घूमकर प्ररिक्रमा करना उचित नहीं है।
इसमें ध्यान रखने वाली बात यह है कि जिस वस्तु की आप परिक्रमा कर रहे हैं, वह हमेशा आपकी दाईं ओर होनी चाहिए। सनातन धर्म में परिक्रमा का एक खास महत्व है, जिसमें धार्मिक स्थलों, वृक्षों और देवी-देवताओं की परिक्रमा की जाती है। खासकर शिवलिंग की परिक्रमा करने के लिए कुछ विशेष नियम हैं। शास्त्रों के अनुसार, शिवलिंग की परिक्रमा केवल आधी ही की जाती है। अगर आप इस नियम का पालन नहीं करते हैं, तो आपकी पूजा का फल अधूरा रह जाता है।

शिवलिंग की परिक्रमा अर्धचंद्राकार रूप में करनी चाहिए। इसमें दिशा का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। परिक्रमा हमेशा बाईं ओर से शुरू कर के जलधारी तक जाकर उलटी दिशा में लौटकर पूरी की जानी चाहिए। ध्यान रखें कि परिक्रमा कभी भी दाईं ओर से नहीं करनी चाहिए। शिवलिंग की परिक्रमा के दौरान जलधारी को लांघना निषिद्ध है।
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जलधारी को लांघना क्यों वर्जित है?
शास्त्रों के अनुसार, शिवलिंग का ऊपरी हिस्सा पुरुष और निचला हिस्सा स्त्री का प्रतीक है। इसे शिव और शक्ति की संयुक्त ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। जलाभिषेक के बाद जलधारी से निकलने वाला जल उस ऊर्जा को संचारित करता है। यदि कोई अनजाने में जलधारी को लांघता है तो वह ऊर्जा व्यक्ति के भीतर प्रवेश कर सकती है, जिससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
शिवलिंग घर में स्थापिक क्यों नहीं करना चाहिए?
यदि आप अपने घर में शिवलिंग स्थापित करने का सोच रहे हैं तो आपको यह जान लेना चाहिए कि शिवलिंग से निकलने वाली ऊर्जा बहुत गरम और शक्तिशाली होती है। इसलिए आमतौर पर शिवलिंग पर एक कलश रखा जाता है, जिससे जल की बूंदें उस पर गिरती रहती हैं। घर में शिवलिंग रखना भी वर्जित माना जाता है और यदि कोई ऐसा करता है तो उसे कई नियमों और मर्यादाओं का पालन करना होगा जो कि कठिन हो सकता है।