संगीत की देवी का शारदापीठ मंदिर, जहां नहीं बजाई जाती घंटी और वाद्ययंत्र

संगीत की देवी का शारदापीठ मंदिर, जहां नहीं बजाई जाती घंटी और वाद्ययंत्र

भारत लाखों ऐतिहासिक और चमत्कारी मंदिरों की पृष्ठभूमि रही है. जिनमें कला, ज्ञान और संगीत की देवी मां सरस्वती के भी चुनिंदा मंदिर विद्यमान है. उन्हीं मंदिरों में से माता का एक अनूठा मंदिर राजस्थान में भी विद्यमान है. जहां आरती किसी घंटी या वाद्यंत्र से नहीं की जाती. अब सवाल ये उठता है कि मां सरस्वती तो खुद कला और संगीत की देवी मानी जाती हैं. जिनके हाथ में वीणा सदा रहती है. तो फिर भला सरस्वती के इस अनूठे मंदिर में कोई वाद्य यंत्र क्यों नहीं बजाया जाता है? आइए जानते है इसके पीछे का कारण.

राजस्थान के शेखावट्टी क्षेत्र के झुंझुनू जिले में स्थित बिड़ला प्रौद्योगिकी और विज्ञान संस्थान परिसार में शारदापीठ मंदिर विराजमान है. जिसकी काफी विशेष और खास मान्यता है. सफेद संगमरमर से निर्मित ये मंदिर बिड़ला परिवार द्वारा लगभग 300 श्रमिकों और शिल्पकारों की मदद से करीब चार सालों में 1960 में बनकर तैयार हुआ था. जो खजुराहो के कंदारिया महादेव मंदिर की शैली पर बना है. 25 हज़ार वर्ग फीट में विस्तृत ये मंदिर 70 स्तंभों पर खड़ा है. जिसके पांच अलग-अलग खंड, गर्भगृह, मंडपम, प्रदक्षिणापथ, अर्ध मंडपम है.

संगीत की देवी का शारदापीठ मंदिर, जहां नहीं बजाई जाती घंटी और वाद्ययंत्र

मां शारदा की खास बात तो ये है कि इस मंदिर में सुबह-शाम होने वाली आरती के समय घंटी या कोई वाद्यशंत्र नहीं बजाया जाता. ऐसा इसलिए है ताकि यहां ध्यान मुद्रा में बैठे व्यक्ति और मेडिटेश्न कर रहे लोग डिस्टर्ब न हो सकें. मंदिर के मुख्य गर्भगृह में खड़ी मुद्रा में मां शारदे की मन मोह लेने वाली प्रतिमा विद्यमान है. प्रतिमा में माता के हाथ में वेद शास्त्र और वीणा है. इस मुख्य गर्भगृह के ऊपर का शिखर 110 फीट ऊंचा है. जिसपर सोने से बनी तांबे के मुकुट समान कलश स्थापित किए गए हैं.

शारदापीठ की सबसे अनूठी विशेषता तो ये है कि यहां स्तंभों और दीवारों पर देवी-देवताओं समेत विशिष्ट वैज्ञानिक, संत, दार्शनिक, राजनेता की प्रतिमाएं पत्थरों में उकेरी गई हैं. जिसमें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से लेकर महान गणितज्ञ आर्यभट्ट समेत 1200 से भी अधिक महापुरुषों की प्रतिमाएं विद्यमान है.