Ram Mandir: 500 साल का इंतजार हुआ खत्म, नागर शैली पर बन रहा है प्रभु राम का भवन, मानव शरीर से की गई मंदिर तुलना

नागर शैली से निर्मित मंदिर

हम और आप जैसे लोग प्रतिदिन पूजा पाठ करते हैं। मंदिरों, देवस्थलों में जाते हैं, लेकिन क्या आपको ये बात पता है कि इन मंदिरों को किस प्रकार बनाया जाता है। ये साधारण कंस्ट्रक्शन द्वारा नहीं बनाए जाते हैं। आपको ये बात जानकर हैरानी होगी कि हमारे भारत में मंदिरों का निर्माण सदियों से नागर शैली और द्रविड़ शैली के अनुसार किया जाता है।

हमारे देश की आस्था का प्रतीक भव्य राम मंदिर का निर्माण भी नागर शैली के अनुसार किया जा रहा है। ये शैली उत्तर भारतीय निर्माण शैली है। वहीं द्रविड़ शैली दक्षिण भारतीय शैली है। आइये आपको अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर के निर्माण के बारे में बताते हैं। साथ ही ये भी जानते हैं कि आखिर क्या है ये उत्तर भारतीय नागर शैली।

नागर शैली से निर्मित मंदिर

उत्तर भारतीय नागर शैली का विकास हिमालय से हुआ और विंध्य क्षेत्र तक रहा। ७वीं से १३वीं शताब्दी में बने मंदिरों को इन्हीं शैली से बनाया गया है। इन मंदिरों का आकार नीचे से लेकर ऊपर तक आयताकार रूप में होते हैं। इन मंदिर में जो वास्तुकला की जाती है, उसे नागर शैली कहा जाता है। इनकी खासियत ये होती है कि इन्हें एक बड़े से विशाल चबूतरे पर बनाया जाता है और मंदिर तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनाई जाती हैं।

मंदिर का गर्भगृह वर्गाकार होता है। स्तंभ और गर्भगृह के ऊपर एक रेखा में ऊंचा शिखर बनाया जाता है। जैसे कि हमने बताया मंदिर को एक चबूतरे पर बनाया जाता है। उसे जगती कहा जाता है। नागर शैली की मंदिरों में कभी एक ओर से तो कभी मंदिर के तीनों ओर से सीढ़ियां बनाई जाती है।

एक रेखा में बने शिखर की बात करें तो यह मंदिर के तीनों भागों में मिला हुआ होता है। इसके बीच के हिस्से, जो की उभरा हुआ होता है, उसे भद्ररथ कहा जाता है। वहीं किनारे से निकले उभार को कर्नरथ कहते हैं। भद्ररथ तथा कर्नरथ के भी बीच के हिस्से को प्रतिरथ का नाम दिया गया है। मंदिर में शिखर सबसे खास होता है और इससे भी महत्वपूर्ण इसके ऊपर लगा आमलक होता है। ये आमलक ही नागर शैली की पहचान है।

नागर शैली में बने मंदिरों की खासियत

1- नागर शैली से बने मंदिरों में सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा, इनका शिखर ऊंचा और पतला होता है।
2- नागर शैली से बने मंदिर में सभा ग्रह यानी जहां लोग इकट्ठा होते हैं और प्रदक्षिणा सबसे महत्वपूर्ण होता है। प्रदक्षिणा का अर्थ होता है- जहां श्रद्धालु भगवान के चारों ओर परिक्रमा करते हैं।
3- शिखर के बाहरी हिस्से को बेहद सुंदर और प्रभावशाली ढंग से बनाया जाता है। इसलिए इसे रेखा शिखर भी कहा जाता है। इनपर आमलक की स्थापना होती है।
4- नागर शैली से बने मंदिर का शिखर ही मंदिर की विशेषता है।
5- फसमाना भवन- ये रेखा शिखर से अधिक चौड़ाई वाले और ऊंचाई में थोड़े छोटे होते हैं। इनकी छतों पर शिलाए कुछ ऐसी बनी होती है, जो मंदिर भवन के बीच के हिस्से के ऊपर एक पॉइंट को जोड़ती है।

नागर शैली के मंदिर की संरचना

नागर शैली से बने मंदिरों की संरचना मानव शरीर के अलग-अलग अंगों से मेल खाती है। जैसे मानव शरीर बनता है, ठीक उसी तरह नागर शैली के मंदिरों की भी संरचना की गई है।

1- मानव के शरीर का सारा भार पैरों पर टिका होता है। ठीक उसी प्रकार नागर शैली से बने मंदिर का पूरा भार जिस पर होता है उसे पाद-अधिष्ठान या जगती पीठ (चबूतरा) कहा जाता है।
2- जैसे शरीर के अंदर कुछ गुप्त क्षेत्र होता है, जिसे कटि प्रदेश कहते हैं। ठीक इसी तरह नागर शैली से बने मंदिर के सबसे गुप्त क्षेत्र को गर्भ ग्रह कहा जाता है।
3- जैसे हमारे शरीर में कमर के ऊपरी क्षेत्र को उदर कहते हैं, ठीक उसी प्रकार मंदिर के अंदर के फैले हुए क्षेत्र को विमान कहते है।
4- मानव शरीर के बाहरी चौड़ाई वाले क्षेत्र यानी कंधा होता है। ठीक उसी प्रकार मंदिर के बाहर मौजूद फैले हुए हिस्से को शिखर कहते हैं।
5- शरीर के ऊपरी गोलाकार हिस्से को गर्दन कहा जाता है। वैसे ही मंदिर का ऊपरी गोल हिस्सा शुकनासिका कहलाता है। इसे भाग ग्रीवा भी कहा जाता है।
6- हमारी गर्दन मंदिर का शिखर होता है तो वहीं मानव शरीर का सिर मंदिर का सबसे ऊपरी हिस्सा आमलक स्तूप होता है।

नागर शैली की उप शैलियां

उत्तर भारत में नागर शैली बेहद प्रभावशाली रही है। ठीक उसी तरह भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में भी वहां कि स्थानीय विशेषताओं के साथ नागर शैली की उप शैलियां बढ़ती गई।

1- चालुक्य / सोलंकी उपशैली – गुजरात एवं दक्षिण राजस्थान
2- अंतर्वेदी उपशैली – उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली
3- कश्मीरी उपशैली – कश्मीर
4- खजुराहो उपशैली – मध्यप्रदेश
5- उड़िया उपशैली – ओड़िशा

नागर शैली से बने कुछ खास मंदिर

  • देवगढ़ का मंदिर
  • पश्चिमाभिमुख मंदिर
  • खजुराहो का लक्ष्मण मंदिर
  • खजुराहो स्थित कंदरिया महादेव मंदिर
  • गुजरात का सूर्य मंदिर
  • कोणार्क का सूर्य मंदिर
  • अल्मोड़ा का जागेश्वर मंदिर