हिंदू धर्म में भगवान गणेश को प्रथम पूजनीय देवता माना जाता है। किसी भी शुभ कार्य, मांगलिक अवसर या पूजा की शुरुआत सबसे पहले विघ्नहर्ता श्रीगणेश का नाम लेकर ही होती है। मान्यता है कि गणपति बप्पा के आशीर्वाद के बिना कोई भी काम पूर्ण नहीं माना जाता। यही वजह है कि उन्हें विघ्नहर्ता कहा जाता है, क्योंकि वे भक्तों के जीवन से हर बाधा और संकट दूर कर देते हैं।
श्रीगणेश की पूजा के लिए हर महीने दो खास दिन बेहद शुभ माने जाते हैं—संकष्टी चतुर्थी और विनायक चतुर्थी। दोनों ही दिन भगवान गणेश को समर्पित हैं और इन्हें पूरे विधि-विधान से मनाया जाता है।
संकष्टी चतुर्थी का महत्व
हर माह का एक-एक पक्ष होता है—शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। दोनों ही 15-15 दिनों के होते हैं और दोनों में एक-एक चतुर्थी पड़ती है। पूर्णिमा के बाद जब कृष्ण पक्ष आता है, तो उसमें पड़ने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। ‘संकष्टी’ का अर्थ ही होता है—संकट हरने वाला। इस दिन गणपति बप्पा की आराधना करने से जीवन की सभी बाधाएं समाप्त होती हैं और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
साल भर में कुल 13 संकष्टी चतुर्थी आती हैं। खास बात यह है कि इस दिन शाम के समय चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण किया जाता है। मान्यता है कि जो भी भक्त इस दिन पूरी श्रद्धा और नियम से व्रत करता है, उसके जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं।

विनायक चतुर्थी क्यों है खास
दूसरी ओर, हर अमावस्या के बाद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहा जाता है। यह भी भगवान गणेश को समर्पित होती है। इस दिन बप्पा की पूजा करने से परिवार में सुख-शांति बनी रहती है और घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
विनायक चतुर्थी का महत्व इतना है कि इसे भगवान गणेश का विशेष दिन माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन अगर भक्त पूरे भाव से गणेशजी को प्रसन्न कर लें, तो उनके जीवन में कभी धन, स्वास्थ्य और सुख की कमी नहीं होती।
पूजा विधि और विशेष मान्यता
संकष्टी चतुर्थी से लेकर विनायक चतुर्थी तक कुल 11 दिन बेहद शुभ माने जाते हैं। परंपरा है कि इस दौरान प्रतिदिन 27 दुर्वा की पत्तियां लेकर उन्हें एक लाल कलावे (धागे) से बांधकर श्रीगणेश को अर्पित करनी चाहिए। ऐसा लगातार 11 दिन तक करने से विघ्नहर्ता बप्पा शीघ्र प्रसन्न होते हैं और अपनी कृपा बरसाते हैं।