सनातन धर्म में शादीशुदा महिलाओं के लिए सिंदूर का काफी खास महत्व है. सिंदूर सभी महिलाओं के सुहागिन होने की निशानी होता है. बिना सिंदूर के एक महिला अधूरी मानी जाती है. शादी के समय पहली बार दुल्हा दुल्हन की मांग में एक सिक्के या अंगूठी से सिंदूर भरता है. शादी से मृत्युकाल तक सिंदूर स्त्रियों का अस्तित्व और उनके श्रृंगार का हिस्सा बन जाता है. सिंदूर लगाने के पीछे ये मान्यता है कि सिंदूर से पति की रक्षा होती है. उसके ऊपर की सभी बलाएं समाप्त हो जाती है. आपने कई महिलाओं को केसरी रंग का सिंदूर लगाते हुए देखा होगा. जिसे भखरा सिंदूर भी कहा जाता है. ऐसे में आइए जानते है कि भखरा सिंदूर क्या होता है.
अक्सर महिलाएं लाल, गुलाबी या केसरी रंग का सिंदूर लगाती हुई दिखी हैं. इन सभी रंगों में से सुहागिन के लिए केसरिया रंग सबसे शुभ माना जाता है. इसे भखरा सिंदूर भी कहा जाता है. भखरा सिंदूर को सबसे शुभ माना गया है. भखरा सिंदूर केवल भगवान को ही चढ़ाया जाता है. इसका अक्सर इस्तेमाल पूजा-पाठ, शादी-विवाह जैसे मांगलिक कार्यों में किया जाता है.
भखरा सिंदूर शुद्धता, सात्विक और सौभाग्य का प्रतीक है. पूजा-विवाह जैसे शुभ कार्यों में महिलाएं ये इस सिंदूर को लगाती हैं.
प्रेम का प्रतीक-

वैसे तो प्रेम का रंग लाल माना जाता है. इसलिए लाल रंग का सिंदूर मांग में भरना भी बेहद शुभ माना गया है. माना जाता है कि सिंदूर से पति-पत्नि के बीच का वैवाहिक रिश्ता भी मजबूत होता है. कई जगह ये मान्यता है कि विवाहित स्त्री जितनी लंबी मांग भरती है, उतनी लंबी उसके पति की आयु होती है. इसके अलावा सिंदूर महिला का मांसिक और शारीरिक स्वास्थ्य भी ठीक रखता है.