जान लें गीता को पढ़ने के ये नियम, बदल देगा आपका जीवन!

जान लें गीता को पढ़ने के ये नियम, बदल देगा आपका जीवन!

हिंदू धर्म ग्रंथों में भगवत गीता को काफी पवित्र ग्रंथ माना गया है. जिसके उपदेश भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए थे.द्वापर युग में हुए परिवार कौरव और पांडवों के बीच सबसे बड़े युद्ध महाभारत के समय श्रीकृष्ण ने कुरूक्षेत्र में अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था. माना जाता है कि गीता में मनुष्य के जीवन से जुड़ें उन सभी रहस्यों और अनसुलझें प्रश्नों का ज्ञान हैं. जिसे पाकर मनुष्य जीवन-मरण की हर मोहमाया से मुक्ति पा सकता है. गीता में लिखे हर श्र्लोक में इतनी शक्ति है कि इसमें निहित हर श्र्लोक को सही से समथ इसमें निहित हर श्र्लोक को सही से समझने से मनुष्य संसार की सभी पीड़ाओं से मुक्त हो सकता है. परंतु महज़ गीता पढ़ लेने से मनुष्य संसार की सभी मोहमाया से मुक्ति नहीं पा सकता. इसके लिए गीता को पढ़ने के कुछ नियम हैं. जिन्हें अपनाना ज़रूरी है. गीता कोई साधारण किताब नहीं है. इसे पढ़ने के चार स्टेप होते हैं. आइए जानें.

जान लें गीता को पढ़ने के ये नियम, बदल देगा आपका जीवन!

भगवत गीता का ज्ञान श्रीकृष्ण ने पांडू पुत्र अर्जुन को तब दिया था, जब उसके हृदय में अपनों के लिए मोह जाग गया था और उसने कौरवों से लड़ने के लिए मना कर दिया. तब अर्जुन की इस बात को सुन श्रीकृष्ण ने अपने असली रूप के दर्शन अर्जुन को कराएं और समस्त गीता सार सुनाते हुए, ये कहा कि ये युद्ध कौरव और पांडवों के मध्य का युद्ध नहीं है, बल्कि धर्म-अधर्म का है. अर्जुन को परिवार के मोह से निकालते हुए, उसे धर्म को जिताने के लिए उन्होंने गीता के उपदेश अर्जुन को दिए थे.

गीता को अपने जीवन में उतारने से पहले उसको सही से पढ़ना और सुनना, उसके बाद उसका चिंतन कर उसे अपने जीवन की सही-गलत परिस्थितियों के अनुसार ही उसे अपने जीवन में उतारना चाहिए.  

पहला स्टैप-

गीता को बार-बार पढ़ना और सुनना चाहिए. गीता एक बार पढ़ने पर आसानी से समझ नहीं आ सकती. इसलिए इसे जितनी बार पढ़ेंगे. उतनी बार चेतना का विस्तार होगा.

दूसरा स्टैप-

गीता में पढ़ने वाली चीज़ों का चिंतन-मनन अवश्य करें. गीता का ध्यान से चिंतन करने से आप इसमें दिए ज्ञान को सही से समझ पाएंगे.

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तीसरा स्टैप-

विचार करने से आपको अपने जीवन की सही-गलत घटनाओं का बोध होने लगेगा.

आखिरी और चौथा स्टैप-

आखिरी और सबसे ज़रूरी है गीता में दिए गए उपदेश को परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अपने जीवन में उतारना.