इस दिन से शुरु होगा खाटूश्याम का लक्खी मेला, भक्तों के लिए चलेंगी स्पेशल ट्रेनें

इस दिन से शुरु होगा खाटूश्याम का लक्खी मेला, भक्तों के लिए चलेंगी स्पेशल ट्रेनें

इस साल का फाल्गुन माह की शुरुआत हो चुकी है. फाल्गुन माह की शुरुआत के साथ हर कोई होली को लेकर बेताब रहता है. हर किसी के मन में इसको लेकर उत्साह जाग उठता है. अब होली की बात हो और खाटूश्याम के मेले की बात न हो. ऐसा कभी हो सकता है भला. क्योंकि खाटूश्याम स्वयं हमारे श्रीकृष्ण के कलयुगी अवतार माने जाते हैं. इसलिए राजस्थान के सीकर स्थित अति लोकप्रिय खाटूश्याम में भी होली का जश्न देखने को मिलता है. फाल्गुन के समय यहां अद्भुत वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता है. जो लक्खी मेले के नाम से भी सुप्रसिद्ध है. इस दौरान लाखों की संख्या में भक्तों का सैलाब खाटूश्याम बाबा के दर्शन करने और मेले का आनंद उठाने सीकर पहुंचता है. तो ऐसे में आइए जानते हैं. इस साल कब शुरु होने जा रहा है खाटूश्याम का ये विश्व प्रख्यात लक्खी मेला.

खाटू मेले के लिए चलेंगी स्पेशल ट्रेन-

इस दिन से शुरु होगा खाटूश्याम का लक्खी मेला, भक्तों के लिए चलेंगी स्पेशल ट्रेनें

देश के सबसे मशहूर खाटूश्यामजी में लगने वाले वार्षिक लक्खी मेले का हिस्सा बनने के लिए हर कोई उत्सुक रहता है. इस मेले की ख्याति देश के साथ-साथ विदेशों में भी है. जिसके चलते महीने भर पहले से भक्तों का कारवां खाटूश्याम पहुंचने लगता है. मेले में उमड़ने वाली भारी भरकम भीड़ को देखते हुए उत्तर पश्चिम रेलवे ने खाटू मेला स्पेशल ट्रेन का संचालन शुरू करने का निर्णय लिया है. जिसका पूरा शेड्यूल भी जारी कर दिया गया है. यह ट्रेन 2 मार्च से शुरू होकर मेले के समापन तक श्रद्धालुओं की आवाजाही में कारगर रहेगी. बता दें कि इस साल खाटूश्यामजी मेले का भव्य आयोजन 12 मार्च से 21 मार्च तक किया जा रहा है. जिसका मुख्य मेला 20 मार्च को रहेगा. जानकारी के लिए बता दें कि 2 मार्च से 31 मार्च तक यह ट्रेन हरियाणा के रेवाड़ी से रींगस के बीच 12 ट्रिप करेगी. यानी कुल मिलाकर ट्रेन पूरे मार्च खाटूश्यामजी मेले के लिए चलेगी.

इस बार श्याम बाबा का वार्षिक लक्खी मेला 12 मार्च यानी (तृतीया) से शुरू होकर 21 मार्च यानी (द्वादशी) तक चलेगा. खाटूश्यामजी का मुख्य लक्खी मेला 20 मार्च को होगा. इस दिन भव्य आयोजन के साथ श्याम बाबा का जन्मोत्सव भी मनाया जाएगा. खाटूश्यामजी को सुजानगढ़ का निशान चढ़ाने के बाद ही मेले का समापन माना जाता है.