सभी देवी-देवताओं और भगवान में श्री गणेश को प्रथम स्थान दिया गया है. हर शुभ काम में या पूजा-आराधना के समय सब देव गणों से पहले भगवान गणेश के पूजा जाता है. भगवान गणेश शिव-गौरी के असीम प्रिय पुत्र हैं. जिनका वाहन केवल एक नन्हा-सा मूषक है. भगवान गणेश मुषक के हिसाब से कद और आकार में काफी बड़े है. तो फिर उन्होंने मूषक को ही अपने वाहन के रूप में क्यों चुना. आइए जानते है इसके पीछे की कहानी..

बुधवार भगवान गणेश का दिन माना जाता है. यानी की हफ्ते का ये दिन पूर्णरूप से उन्हें समर्पित है. ये दिन भगवान गणेश के साथ-साथ उनके प्रिय वाहन मुषक के लिए भी काफी पूजनीय है. भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है. मूषक के भगवान गणेश का वाहन बनने के पीछे काफी रोचक कथाएं प्रचलित है.
पहली कथा-
गणेश पुराण के अनुसार कहा जाता है कि, देवराज इंद्र के दरबार में एक क्रौंच नाम का गंधर्व था. गंधर्व निम्न वर्ग के देवता होते है, जो स्वर्ग में रहते है. ये अन्य देवताओं और मुनियों के बीच संदेश वाहक के रुप में काम करते है.एक समय की बात है देवराज इंद्र की सभा में क्रौंच सभी अप्सराओँ के साथ मज़ाक-मस्ती में मग्न थे. अपनी हंसी-ठिठोली के चलते क्रौंच ने गलती से वामदेव नाम के मुनि पर पैर रख दिया. जिसके बाद क्रौंच की इस शरारत के चलते मुनि वामदेव ने क्रोध में आकर क्रौंच को चूहे बनने का श्राप दे दिया.

इस श्राप से मूर्छित हो, क्रौंच ऋषि पराशर के आश्रम में जा गिरा. वहां जाकर उसने चारों ओर उथल-पुथल मचा दी. आश्रम के सारे बर्तन तोड़कर सारा अन्न खा गया. ऋषि-मुनियों को वस्त्र और उनके ग्रंथ भी कुतर डालें.
श्री गणेश ने तोड़ा मूषक का अहंकार
पराशर ऋषि और सभी मुनि काफी परेशानी में थे, की इस चूहे के आतंक से कैसे बचा जाए. तब इन सबसे दुखी होकर पराशर ऋषि श्रीगणेश के चरण में आए. ऋषि पराशर की ये बातें सुन गणेश ने अपना तेजस्वी पाश फेंका. वो पाश मुषक का पीछा करते-करते पाताल तक पहुंच गया और उसका कंठ बांध लाया और उसे गणेश के सामने पेश कर दिया.

इसके बाद मूषक ने गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए उनकी आराधना की और अपने प्राणों की भीख मांगी. मूषक की स्तुति से गजानन प्रसन्न हुए और उसे कोई वरदान मांगने को कहा. तब मूषक ने अहंकार में आ, भगवान गणेश से ही वरदान मांगने को कहा. मूषक की इस मुर्खता पर हंसकर भगवान गणेश ने कहा, तुम मेरे वाहन बन जाओ.
मूषक ने भी घमंड में आकर उन्हें तथास्तु कह दिया. लेकिन मूषक गणेशजी का वजन सह नहीं पाया. गजानन के भारी भरकम वजन से वे दब रहा था. तब उसका घमंड चूर हुआ और उसने गणेश से उनका वजन कम करने की प्रार्थना की. उसके बाद से ही मूषक भगवान गणेश का वाहन बन गया.
दुसरी प्रचलित कथा-

एक कथा ये भी प्रचलित है कि एक बार गजमुखासुर नामक राक्षस ने सभी देवताओं के नाक में दम कर रखा था. सब देवताओं ने उससे परेशान होकर श्रीगणेश के पास मदद की गुहार लगाई. श्रीगणेश का गजमुखासुर से काफी भयंकर युद्ध हुआ. इस युद्ध के चलते गणेश का एक दाँत टूट गया.
इस क्रोधित होकर गणेश ने गजमुखासुर पर ऐसा प्रहार किया कि उसने डर में चूहे का रूप धारण कर लिया और वहां से भागने लगा. परंतु भगवान ने उसे पकड़ लिया और मृत्यु के डर से उसने भगवान से क्षमा मांगी. तब उसे क्षमा कर भगवान गणेश ने मूषक के रूप में ही अपना वाहन बना लिया.