राजस्थान स्थित सीकर जिले में बाबा श्याम का विश्व विख्यात मंदिर स्थापित है। आज के समय में खाटू श्याम के श्याम बाबा सबसे ज्यादा पूजे जाने वाले भगवानों में से एक हैं। इन्हें हारे का सहारा भी कहा जाता है। भक्तों के मन में इनको लेकर असीम श्रद्धा भाव है। खाटू बाबा को भगवान श्रीकृष्ण के समान दर्जा दिया गया है। जैसे-जैसे समय बीत रहा है, वैसे ही बाबा श्याम के भी भक्तों की संख्या बढ़ती जा रही है।
लेकिन क्या आप जानते है कि श्याम बाबा थे कौन? कौन-से युग से ये लोगों के बीच अस्तित्व में आए? किस बात के चलते ये बन गए विश्व विख्यात बाबा खाटू श्याम? क्यों सबकी जुवां पर एक ही नाम खाटू श्याम रहता है? आइए जानते हैं।
आज के समय में खाटूश्याम बाबा को श्रीकृष्ण के समान पूजा जाता है। देशभर में उनके भक्तों के हृदय में गहरी श्रद्धा और आस्था है। हर साल लाखों श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं लेकर राजस्थान स्थित खाटूधाम पहुंचते हैं और बाबा श्याम के चरणों में शीश नवाते हैं।
बर्बरीक से खाटूश्याम बनने की कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, खाटूश्याम जी का वास्तविक नाम बर्बरीक था जो महाबली भीम के पुत्र घटोत्कच के बेटे थे। बाल्यकाल से ही बर्बरीक अत्यंत पराक्रमी, साहसी और धर्मपरायण योद्धा थे। उन्होंने भगवान शिव की तपस्या कर उनसे तीन अमोघ बाण प्राप्त किए थे जिनके बल पर वे कभी भी किसी भी युद्ध का परिणाम पलट सकते थे। इस कारण उन्हें तीन बाणधारी भी कहा जाता है।
महाभारत युद्ध और बर्बरीक का त्याग
महाभारत युद्ध की घोषणा होते ही बर्बरीक ने भी युद्ध में भाग लेने की इच्छा जताई। जब उन्होंने अपनी माता से युद्ध में जाने की आज्ञा मांगी तो माता ने उन्हें एक महत्वपूर्ण वचन दिया — “जो पक्ष पराजित होता दिखे, तुम उसी का साथ देना।”
श्रीकृष्ण जानते थे कि इस वचन का प्रभाव युद्ध की दिशा बदल सकता है। यदि बर्बरीक युद्धभूमि में उतरते तो वे हारते हुए कौरवों का साथ देते और जब वे हारने लगते तो पांडवों की ओर हो लेते। इस चक्र में युद्ध का संतुलन बिगड़ जाता।
इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण का रूप धारण कर बर्बरीक से एक दान की याचना की — अपने शीश का दान। जैसे ही श्रीकृष्ण ने अपने विराट रूप में दर्शन दिए बर्बरीक ने श्रद्धा से अपना शीश काटकर श्रीकृष्ण के चरणों में अर्पित कर दिया।
बर्बरीक को अमरत्व और वरदान
श्रीकृष्ण ने बर्बरीक के इस अद्वितीय बलिदान से प्रसन्न होकर उनके सिर को अमृत से सिंचित कर अमर कर दिया। बर्बरीक ने इच्छा जताई कि वे महाभारत का संपूर्ण युद्ध देखना चाहते हैं। श्रीकृष्ण ने उनकी इस इच्छा को स्वीकारते हुए उनके सिर को एक ऊंची पहाड़ी पर स्थापित कर दिया जहां से उन्होंने पूरा युद्ध देखा।
जब युद्ध समाप्त हुआ तो पांडव आपस में विजय का श्रेय लेने लगे। इस पर श्रीकृष्ण सभी को बर्बरीक के पास लेकर गए जिन्होंने युद्ध को निरपेक्ष भाव से देखा था। बर्बरीक ने कहा,
“भगवन, मैंने युद्ध में किसी योद्धा को नहीं देखा, केवल आपका सुदर्शन चक्र हर ओर विचरता रहा और मां दुर्गा रक्तपान करती रहीं।” यह सुनकर सभी पांडव नतमस्तक हो गए।
हारे का सहारा: खाटूश्याम बाबा
श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को वरदान दिया कि कलियुग में लोग उन्हें ‘श्याम’ नाम से पुकारेंगे और वे ‘हारे का सहारा’ बनकर श्रद्धालुओं के दुखों को हरेंगे। उनके तीन बाण और बलिदान की याद में ही आज खाटूश्याम बाबा के नाम का जयकारा गूंजता है — “खाटूवाले का बोल बाला, हारे का सहारा बाबा श्याम हमारा!”