हिंदू धर्म में भगवान गणेश प्रथम पूजनीय माने गए हैं. कोई भी शुभ कार्य भगवान श्रीगणेश की पूजा के बिना नहीं किया जा सकता. किसी भी नए काम की शुरूआत के लिए श्रीगणेश को प्रथम आमंत्रण देना होता है. भगवान गणेश को ज्ञान और बुद्धि का भंडार माना जाता है. वहीं, माँ लक्ष्मी को धन-वैभव की देवी माना जाता है. माँ लक्ष्मी अपने प्रिय भक्त को धन-दौलत से परिपूर्ण होने का आशीर्वाद देती हैं. इसलिए हर मनुष्य माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उनकी अराधना करता है. लेकिन दिवाली के अवसर पर माता लक्ष्मी और श्रीगणेश की साथ में पूजा की जाती है. माता लक्ष्मी के देवा श्रीगणेश को विराजित किया जाता है. क्या आपको इसके पीछे का कारण पता है कि क्यों बिना श्रीगणेश के देवी लक्ष्मी की पूजा भी अधूरी मानी जाती है? आइए जानते है इसके पीछे की पौराणिक कथा.

पौराणिक कथा-
माता लक्ष्मी समस्त ब्रह्मांड के संचालक यानी श्रीविष्णु की अर्धांगिनी हैं. जब एक बार माता लक्ष्मी और श्रीहरि एक साथ बैठे हुए थे, तब माता लक्ष्मी के मन में एक ख्याल आया कि वे धन और वैभव की देवी हैं. पूरी सृष्टि उन्हें धन-दौलत में वृद्धि के लिए पूजती है. लेकिन सृष्टि का संचालक और अंतरयामी होने के कारण भगवान विष्णु ने माता की मन की बात समझ ली.
जिसके बाद माता के मन में इसी पनपते अभिमान को तोड़ने के लिए भगवान विष्णु ने माता से कहा कि समग्र धन-वैभव, सुख-समृद्धि, संपत्ति-संपदा से परिपूर्ण होने के बावजूद भी माता अधूरी हैं. श्रीहरि की ये बात सुन माता हैरत में पड़ गईं और उनको विष्णु जी की ये बात काफी चुभी. इस बात का कारण बताते हुए भगवान विष्णु ने माता से बोला कि एक स्त्री सभी पूर्ण होती है, जब वो मातृत्व का सुख भोगती है. हालाँकि माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की कोई संतान नहीं थी.

इसके चलते माँ लक्ष्मी ने अपनी ये व्यथा माता पार्वती से साझा की और ये निवेदन किया कि उनके दो पुत्र कार्तिकेय और गणेश में से वे गणेश को उन्हें गोद दे दें. माता पार्वति माँ लक्ष्मी के इस निवेदन को मना नहीं कर पाईं और उन्होंने देवी लक्ष्मी को गणेश गोद दे दिए. इस तरह से भगवान गणेश माँ लक्ष्मी के गोद लिए पुत्र बन गए.
गणेश को पुत्र के रूप में पाने के बाद माता लक्ष्मी बहुत प्रसन्न हुई और उन्हें अपने मातृत्व सुख की अनुभूति हुई. साथ ही उन्होंने अपने आप को परिपूर्ण महसूस किया. इस बात की असीम खुशी से माता ने गणेश को ये वरदान दिया कि जो कोई भी माता लक्ष्मी को पूजेगा और उनका नाम लेगा, उनके साथ-साथ श्रीगणेश का भी नाम लेना पड़ेगा. बिना इनके पूजा और वो काम अधूरी मानी जाएगी.