आज के युग में बाबा श्याम के लिए लोगों के मन में अपार श्रद्धा और विश्वास है. जिनका राजस्थान स्थित सीकर में मौजूद खाटू श्याम मंदिर देशभर में काफी विख्यात है. लेकिन क्या आप जानते हैं जिस प्रकार सीकर के खाटू श्याम मंदिर की मान्यता है उसी प्रकार चुलकाना धाम स्थित खाटू श्याम मंदिर की भी मान्यता है. क्योंकि ये वहीं जगह है जहां स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उनका सिर दान में मांगा था. इस जगह एक ऐसा पीपल का पेड़ मौजूद है जिसके तीन पत्तों में सदियों से छेद है. आइए जानते है इस स्थल और पीपल के पत्तों का इतिहास.
हरियाणा राज्य के पानीपत के समालखा कस्बे में स्थित चुलकाना गांव आज के समय में चुलकाना धाम के नाम से सुप्रसिद्ध है. क्योंकि यहां बाबा खाटू श्याम का एक बेहद प्राचीन मंदिर विद्यमान है. कहा जाता है कि इसी पवित्र स्थल का महाभारत युद्ध से काफी बड़ा ताल्लुक है. ऐसा इसलिए क्योंकि ये वही भूमि है, जहां पर बाबा श्याम यानी की पांडू पुत्र भीम के बेटे बर्बरीक ने श्रीकृष्ण को अपना शीश दान में दिया था.

बर्बरीक को शिवजी के आशीर्वाद से तीन बाण प्राप्त थे. जो कभी अचुक नहीं होते थे. बर्बरीक एक वीर योद्धा भी थे. यदि इनकी माता के दिए आशीर्वाद के अनुसार बर्बरीक हारने वाले यानी कौरवों के पक्ष में लड़ते तो इस युद्ध का मकसद पूरा नहीं हो पाता. इसलिए चुलकाना गांव में श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण का रूप धारण कर बर्बरीक को एक साथ तीन पत्तों में छेद करने के लिए कहा. बर्बरीक का तीर तो पत्तों को चीर का निकल गया और श्रीकृष्ण के चरण के पास आकर रूक गया क्योंकि श्रीकृष्ण के चरणों के नीचे ही तीसरा पत्ता था.
कृष्ण ने बर्बरीक के पराक्रम को देखते हुए उनसे उनका शीश दान में मांगा. बर्बरीक ने कृष्ण से उनका परिचय पूछते हुए कहा कि कोई ब्राह्मण शीश दान में नहीं मांगता. तब कृष्ण ने बर्बरीक को अपने असली स्वरूप के दर्शन कराए. और उनसे युद्ध न करने के लिए प्रार्थना करते हुए युद्ध में पांडव के जीतने की वजह बताई. श्रीकृष्ण की बात स्वीकार कर उसी क्षण बर्बरीक ने अपना शीश उन्हें दान कर दिया और हारे का सहारा कहलाए जाने लगे.
जिस पीपल के पेड़ के पत्तों को बर्बरीक ने भेदकर उनमें छेद करे थे, वे पत्तें पीपल के पेड़ के साथ आज भी चुलकाना धाम में मौजूद है.