राममंदिर में मंगलवार को हुआ प्रायश्चित कार्यक्रम, जानें क्या होता है प्रायश्चित?

राममंदिर में मंगलवार को हुआ प्रायश्चित कार्यक्रम, जानें क्या होता है प्रायश्चित?

रामलला की जन्मभूमि में उनका आलौकिक भव्य मंदिर बनकर तैयार है. चारों ओर भक्तों में अपने प्रभु राम को देखने का उमंग है. हर कोई राम नाम में मग्न है. ऐसे में, सभी भक्तों का अब इंतज़ार खत्म होने जा रहा है..जल्द ही भगवान राम का अपनी नगरी में आगमन होने जा रहा है. अयोध्यानगरी में 22 जनवरी 2024 को रामलला के प्राण  प्रतिष्ठा का कार्यक्रम होगा. इस शुभ घड़ी के दिन रामलला की मूर्ति उनके भव्य और आलौकिक मंदिर में विराजेगी. प्राण-प्रतिष्ठा के कार्यक्रम राम मंदिर में 16 जनवरी से शुरु हो चुके हैं. हफ्तेभर के इस कार्यक्रम में सबसे पहला कार्यक्रम प्रायश्चित पूजा का था. यह पूजा सुबह 9 बजकर 30 मिनट से शुरू हुई. अब वैदिक परंपरा के अनुसार आखिर ये प्राश्चित क्या होती है और इसे क्यों किया जाता है आइए इसके बारे में विस्तार से सब जानते हैं सबकुछ.

जीवन में हर प्राणी से जाने-अनजाने में कोई न कोई भूलचूक हो ही जाती है. क्योंकि मनुष्य का दूसरा नाम ही भूल है. उसी भूलचूक के कारण मनुष्य को इसका पछतावा भी होता है. अब वैदिक परंपरा के अनुसार हिंदू धर्म में भगवान के भव्य मंदिर निर्माण करने के लिए और उनकी पूजा करने के लिए कई विशेष नियम पद्धतियां हैं. जिनको पालन करना अति अनिवार्य होता है. ऐसे में यदि किसी भी पूजा पद्धति का पालन नियमित रूप से हो पाए, या फिर अनजाने में कोई भूल हो जाए, तो उस कारण मन को खेद होता है कि प्रभु की पूजा में भूलचूक कैसे हो गई. जिसकी वजह से इसी गलती का प्रायश्चित करने के लिए मंदिर निर्माण से ठीक पहले प्रायचित का कार्यक्रम रखा जाता है.

राममंदिर में मंगलवार को हुआ प्रायश्चित कार्यक्रम, जानें क्या होता है प्रायश्चित?

इस पूजा में शारीरिक, मानसिक के साथ-साथ आंतरिक स्थिति जैसी तीन चीजों का प्रायश्चित किया जाता है. वैदिक पूजा पद्धति के मुताबिक, इस पूजा में 10 विधि का स्नान भी किया जाता है. इसमें पवित्रता का संकल्प लेते हुए भस्म समेत कई चीजों से स्नान किया जाता है. इस पूजा में एक गोदान करने का भी विधान होता है. गौदान को सनातन धर्म में सबसे सर्वोच्च दान माना गया है. इसके दौरान गौ माता का सर्वप्रथम श्रृंगार किया जाता है. उसके बाद उनके सभी अंगों का पूजन होता है. क्योंकि गौ माता के सभी अंग में 33 कोटी देवी-देवताओं का वास माना जाता है. इसलिए किसी भी अनजाने में की गई भूलचूक से बचने के लिए गौदान सबसे श्रेष्ठ दान है. इसके अलावा सोना-चांदी और आभूषण भी इस पूजा में दान किए जाते हैं.

सनातन धर्म के अनुसार यदि भगवान की अराधना या उनके किसी भी निमित धार्मिक अनुष्ठान में कोई कसर रह जाती है. तो, उसका प्रायश्चित करने से किसी भी तरह का पाप नहीं लगता है. शास्त्रों में भी कथित है कि भूलचूक से हुई गलती का प्रायश्चित करने से वे गलती पाप की श्रेणी में नहीं आती है. इसलिए जब भी मंदिरों का निर्माण या देवी-देवताओं की प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा कर मूर्तियों को विराजित किया जाता है, तो यह बहुत पवित्र और बड़े अनुष्ठानों की श्रेणी में आती है. इसलिए इस दौरान अगर किसी भी तरह की भूलचूक हो जाती है तो उसके लिए प्रायश्चित पूजा करने से उसका दोष नहीं लगता है.