भोलेनाथ ने अपने ललाट पर क्यों धारण किया हैं चंद्रमा?

भोलेनाथ ने अपने ललाट पर क्यों धारण किया हैं चंद्रमा?

हिंदू धर्म में सोमवार का दिन भगवान शिव की पूजा के लिए समर्पित होता है. भगवान शिव की बात करें तो, उनके हाथों में डमरू, गले में नाग देव विराजित हैं. गंगा है उनकी जटा में, चंद्रमा हैं ललाट पर. वो सौम्य भी हैं, रौद्र भी हैं. आदि भी हैं, अंत भी हैं. हर तस्वीर में हमने भोलेनाथ को अपने माथे पर चंद्रमा को धारण करे हुए देखा हैं. ऐसा क्यों है? आइए जानते हैं.

सदियों से चली आ रही पौराणिक कथा के मुताबिक, आज जिन्हें नक्षत्र माना जाता हैं, वे राजा दक्ष की पुत्रियां मानी जाती हैं. राजा दक्ष की उन्हीं 27 पुत्रियों से चंद्र देव का विवाह हुआ था. परंतु अपनी 27 पत्नियों में चंद्रदेव रोहिणी को सबसे अधिक प्रेम करते थे और समय व्यतीत करते थे. बाकी 26 रानियों को ये बात बिल्कुल पसंद नहीं थी. अपनी इस व्यथा को लेकर सभी रानियां अपने पिता दक्ष के पास पहुंची और उनसे अपनी सारी बात साझा की.

अपनी पुत्रियों की बात सुन दक्ष प्रजापति ने चंद्रदेव को एक बार प्यार से  समझाया. परंतु उन्हें समझ नहीं आया और वो फिरसे अपना सारा समय रोहिणी के साथ ही व्यतीत करते थें. इस बात से गुस्सा होकर दक्ष प्रजापति ने चंद्रदेव को दिन-प्रतिदिन उनका तेज कम होने का श्राप दे डाला. जिससे चंद्रदेव को क्षीण रोग लग गया और धीरे-धीरे उनकी 16 कलाएं खत्म होती चली गई.

ये बात जानकर नारद जी ने उन्हें भोलेनाथ की शरण में जाने की और शिव स्तुति करने की सलाह दी. नारद के कथन अनुसार चंद्रदेव ने वैसा ही किया. उनकी आराधना से प्रसन्न होकर शिवजी ने चंद्र को अपने ललाट पर धारण करते हुए उन्हें प्रदोष काल में जीवित रहने का वरदान दिया. शिवजी के इस वरदान के चलते वे मृत्युतुल्य होते हुए भी मृत्यु को प्राप्त नहीं हुए.