प्राचीन काल में चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु, महामंत्री होने के साथ-साथ आचार्य चाणक्य एक बहुत महान अर्थशास्त्री, रणनीतिकार और दार्शनिक भी थें. इसके अलावा वो नीति-शास्त्रों के रचयिता भी माने जाते हैं. अपनी नीति शास्त्रों के ज़रिए उन्होंने व्यक्ति के जीवन से जुड़ी कई अहम बातों का ज़िक्र किया है. जिन्हें ध्यान में रखकर मनुष्य कामयाबी की राह पर चल सकता है. जीवन के मार्गदर्शन की उन्हीं नीतियों में आचार्य चाणक्य ने ये सलाह दी है कि अपनी भावनाओं में बहकर या जल्दबाजी में निर्णय लेने वाले व्यक्ति आगे चलकर पछताते हैं. चाणक्य ये बात कहने के पीछे क्या मतलब है. आइए जानते हैं.
एक कुशल विद्वान होने के साथ-साथ, चाणक्य को वेदों, शास्त्रों और अर्थशास्त्रों का भी असीम ज्ञान था. अपनी नीति के ज़रिए, उन्होंने मानव हित और कल्याण की बात की है. लेकिन चाणक्य का ये कहने के पीछे क्या कारण है कि भावनाओं में बहकर और जल्दबाजी में निर्णय लेने वाले मनुष्य के हाथ केवल पछतावा लगता है.
कर्मायत्तं फलं पुंसां बुद्धि: कर्मानुसारिणी।
तथापि सुधियश्चार्याः सुविचार्यैव कुर्वते॥
आचार्य चाणक्य इस श्र्लोक के ज़रिए मनुष्य के कर्म के बारे में बताते हुए बोलते हैं कि व्यक्ति को अपने कर्मों के अधीन रहकर ही कर्म फल मिलता है. मनुष्य की बुद्धि भी उसके कर्मानुसार कार्य करती है. लेकिन जो ज्ञानी व्यक्ति होता है, वे हर परिस्थिति को ध्यान में रखकर उसपर सोच-समझकर ही कोई निर्णय लेता है. बिना सोचे समझे किसी निर्णय पर पहुंचने से सफलता हाथ नहीं लगती. चाणक्य की नीति के अनुसार, किसी भी कार्य को अंजाम देने से पहले उसके लिए एक अच्छी नीति बनानी चाहिए. यही सफलता प्राप्त करने का एक बेहतरीन तरीका है.
इस बात का रखें ध्यान-
चाणक्य के अनुसार, मनुष्य को उसके कर्मों के अनुसार फल प्राप्त होता है. उनके अनुसार, हर बात को अच्छे से सोच-समझकर, गहराई से उसका आंकलन करके, उस कार्य पर गहन में विचार करना चाहिए. जीवन में निर्णय लेना मनुष्य के जीवन का अहम भाग होता है. लेकिन उसके लिए गहन विचार करना भी आवश्यक है. जल्दबाज़ी में फैसला लेने वाले लोगों को हमेशा निराशा ही हाथ लगती है.