इन परिक्रमाओं से ही पूर्ण होंगे रामलला के दर्शन, मिलता है बैकुंठ धाम के समान फल

इन परिक्रमाओं से ही पूर्ण होंगे रामलला के दर्शन, मिलता है बैकुंठ धाम के समान फल

श्रीराम की अयोध्यानगरी को शास्त्रों में बैकुंठ धाम का दर्जा दिया गया है. यह भगवान राम की पुरी है जहां भगवान स्वयं निवास करते हैं. साथ ही मान्यता है कि यहां स्वयं श्रीहरि विष्णु ने भी सालों तप किया था. अयोध्या में रामलला के दर्शन के बाद परिक्रमा का भी खासा महत्व है. रामलला का भी भव्य मंदिर अब श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए तैयार हो चुका हैं. ऐसे में राघव स्वरूप लला को निहारने के लिए श्रद्धालु काफी बेकरार हैं. ऐसे में यदि आप अयोध्या में श्रीराम के बालस्वरूप के दर्शन के लिए आते हैं, तो एक जगह है, जहां परिक्रमा किए बिना रामलला के दर्शन अधूरे माने जाएंगे. आइए उस जगह के बारे में बताते है.

अयोध्यापुरी, सप्तपुरीयों में से प्रथम पुरी कहलाई जाती है. इसे बैकुंठ के समान माना गया है. इसलिए इस नगरी में की जाने वाली परिक्रमा बैकुंठ की परिक्रमा के समान होगी. जहां स्वयं श्रीहरि विष्णु विराजते हैं.

अयोध्या में 3 प्रकार की परिक्रमाएं-

इन परिक्रमाओं से ही पूर्ण होंगे रामलला के दर्शन, मिलता है बैकुंठ धाम के समान फल

अयोध्या में  कुल 3 परिक्रमाएं करने का विधान है. पहली परिक्रमा 84 कोसी होती है. जिसे ज्यादातर साधु-संत करते हैं. ये 84 कोस की परिक्रमा अयोध्या के साथ-साथ उसके आसपास के नगरों में भी की जाती है. इस परिक्रमा के पीछे ये मान्यता है कि जो इस कठिन परिक्रमा को कर लेता है, तो उसे युगों-युगों तक 84 योनियों में भटकना नहीं पड़ता और मोक्ष की प्राप्ति होती है. अयोध्या की इस 84 कोस की परिक्रमा करने का सबसे शुभ महीना कार्तिक का माना जाता है.

दूसरी परिक्रमा 14 कोसी होती है और तीसरी 5 कोसी परिक्रमा है. 14 और 5 कौसी परिक्रमा ग्रहस्थ लोगों के द्वारा की जाती है. शास्त्रों में 14 प्रकार के लोकों का ज़िक्र किया गया है. 14 कोस की परिक्रमा के पीछे ये मान्यता है कि इस परिक्रमा को पूरी करने से मनुष्य को 14 लोकों में नहीं भटकना पड़ता. इसके अलावा, 5 कोसी परिक्रमा मोक्षदायनी है. जो यहां आकर एक बार परिक्रमा कर लेता है उसे प्रभु राम का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन भर उस व्यक्ति का कल्याण होता है.

परिक्रमा करने का मंत्र

परिक्रमा के दौरान रखा गया एक-एक कदम भगवान की भक्ति में समर्पित होता है. इसलिए जब आप परिक्रमा करें तो इस मंत्र का उच्चारण अवश्य करें. ये मंत्र इस प्रकार से है.

यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च।

तानि सवार्णि नश्यन्तु प्रदक्षिणे पदे-पदे।।

अयोध्या में की जाने वाली परिक्रमा में एक-एक पग भगवान की भक्ति को समर्पित होता है. यह परिक्रमा अयोध्या के अंतर्गत आती है. जिसमें यहां के सभी प्रमुख तीर्थ स्थलों से लेकर श्री राम जन्मभूमि परिसर भी शामिल होता है. इस प्रकार से रामलला की भी परिक्रमा पूर्ण हो जाती है.