सूर्यदेव के पुत्र और यमराज के भ्राता शनिदेव को न्याय के देवता के रूप में पूजा जाता है.

इन्हें कर्मफल दाता भी कहा जाता है क्योंकि ये मनुष्यों को उनके कर्मों के अनुसार फल देते हैं.

शनिदेव का ग्रह छठा माना जाता है, जो ढ़ाई सालों में एक बार राशि परिवर्तन करते हैं.

जिसके दौरान कुछ राशियों को फायदा होता है और कुछ को लाभ. जिससे कुछ राशि के लोग शनि की साढ़े साती और ढैय्या का शिकार हो जाते हैं.

ऐसे में शनिदेव की टेढ़ी नज़र से बचने के लिए घोड़े की छाल का उपयोग करना बेहद शुभ माना गया है.

शारीरिक पीड़ा से बचने के लिए घोड़े की नाल से बना छल्ला काफी लाभकारी माना जाता है.

शनिवार के दिन इस छल्ले को सरसों के तेल मे भिगोकर उसे अपने दाहिनें हाथ ही मध्यम अंगुली में धारण करना चाहिए.

ऐसा करने से शनि की बुरी नज़रें पड़ने से होने वाली शारीरिक संबंधी सभी पीड़ाओं से राहत मिलती है.

इसके अलावा घोड़े की नाल को शुक्रवार के दिन तेल में धोकर शनिवार की शाम उसे घर के मुख्य द्वार पर लगा लेने से परिवार के सभी कलेश दूर होते हैं.