राजस्थान के दौसा जिले में दो पहाड़ियों के बीच में स्थित मेहंदीपुर बालाजी का मंदिर ऊपरी शक्तियों के उपचार के लिए मशहूर है. जहां आए दिन भक्तों का तांता लगा रहता है. ये मंदिर अपने विचित्र नज़ारों और रहस्यों से जाना जाता है. बाल घुमाती हुई महिलाएं, अपने शरीर पर भारी पत्खर लादे हुए लोग, बचाओ-बचाओ की गुहार लगाते मनुष्य, बेड़ियों में बंधे महिलाएँ और पुरूष, उनका तेज़ आवाज़ में बड़बड़ाना, चीखना, चिल्लाना! सच में मंदिर के माहौल को काफी भयावह बना देते हैं. जिनको देख मंदिर परिसर में मौजूद सभी लोगों की रूह कांप जाती है. इस मंदिर में ऊपरी बाधाओं से ग्रस्त और भूत-प्रेत से पीड़ित लोग बाबा के सामने अपनी हाज़िरी लगाकर इनसे मुक्त होते हैं. लेकिन जिस प्रकार बाबा ऐसे मनुष्यों की पीड़ा हरते है. उसी तरह अपराध करने वाले लोगों को भारी दंड भी देते हैं.
बालाजी महाराज का मंदिर राजस्थान के साथ-साथ दक्षिण भारत में भी स्थित है. परंतु जिस प्रकार यहां हनुमान के बालरूप के दर्शन होते हैं. उसी प्रकार दक्षिण में श्रीराम बालरूप में बालाजी के तौर पर विराजमान हैं. बालाजी का ये मंदिर मुख्य तौर पर तीन दरबारों में बंटा है. जिसमें से प्रवेश करते ही पहला दरबार बालाजी महाराज का है, दूसरा दरबार कोतवाल कप्तान यानी भैरव बाबा का है और तीसरा दरबार सीढ़ियों के रास्ते होकर प्रेतराज सरकार का.
कहा जाता है कि कई वर्षों पूर्व तीनों भगवान एक साथ यहां प्रकट हुए थे. जिसके बाद से मंदिर में उपस्थित बालाजी, कोतवाल कप्तान और प्रेतराज सरकार की प्रतिमाएं पर्वत में गढ़ गई.
इस मंदिर के दिन की शुरूआत बालाजी महाराज, कोतवाल कप्तान और प्रेतराज सरकार के जयकारे के साथ होती है. वैसे तो मंदिर में होने वाली सुबह की आरती छह बजे होती है. जिसके बाद मंदिर के पट खोले जाते हैं. लेकिन इस मंदिर में मंदिर के पट खुलने से पहले ही मंदिर के बाहर भक्तों का जमावड़ा लगना शुरू हो जाता है. जिससे पूरी सड़क केवल बालाजी के भक्तों से ही घिरी होती है. जैसे ही आरती के मंदिर के पट खुलते हैं और पंडित बाहर छिंटें देने आते है, वैसी ही छिंटों के लिए भक्त एक-दूसरे पर चढ़ने लगते हैं. इसके बाद जिन लोगों को दरखवास्त लगानी होती है. वे मंदिर परिसर में अपनी मुश्किलें और परेशानियां लेकर जाते हैं.
मंदिर में भगवान के सामने अर्जी लगाई जाती है. जिसका मतलब है भगवान के सामने हाजिरी लगाना. ये हाजिरी प्रसाद लेकर लगती है. लेकिन कोतवाल कप्तान और प्रेतराज सरकार को चढ़ाया हुआ प्रसाद स्वयं नहीं ग्रहण करते. अपितु मंदिर के पिछले हिस्से में जाकर उस प्रसाद को अपने ऊपर से सात बार वारते हैं और उसे पीछे फेंक देते हैं. परंतु पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए. क्योंकि उस प्रसाद को अपने ऊपर वारने से हमारे अंदर जो भी नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव होगा वो खत्म हो जाता है.
इसके अलावा जिस व्यक्ति ने अपराध किया है, उसे कोतवाल सरकार भारी दंड देते हैं. जिन लोगों को दंड मिलता है, वे बेड़ियों से बंधे होते हैं या चीख-चीख कर रो रहें होते हैं.