दक्षिण भारत के तमिल में स्कंद षष्ठी का काफी अधिक महत्व है. स्कंद षष्ठी कार्तिकेय को समर्पित होती है. इस दिन कार्तिकेय की पूजा का विशेष महत्व है. कार्तिकेय के उत्तर भारत में काफी कम मंदिर है. लेकिन दक्षिण भारत के ये बहुत विख्यात देवता हैं. वहां जगह-जगह इनके मुरूगन नाम से कई मंदिर स्थित है. आइए जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कथा.
भारत में उत्तर से लेकर दक्षिण और पश्चिम से लेकर पूर्व तक देवी-देवताओं के अनेक रूपों को पूजा जाता है. जिस प्रकार भगवान विष्णु को उत्तर भारत में श्रीकृष्ण, हरि, परशुराम आदि के नामों से जाना जाता है और दक्षिण भारत में विठ्ठल, पद्मनाभ, वैंकटेश्र्वर के नाम से जाना जाता है. उसी प्रकार भगवान शिव के ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय को तमिल में स्कंद, मुरूगन, सुब्रमण्यम जैसे नामों से जाना जाता है.
स्कंद षष्ठी को भगवान कार्तिकेय के जन्म के रूप में मनाया जाता है. मान्यता है कि जिस प्रकार इस दिन माता पार्वति को कार्तिकेय संतान के रूप में प्राप्त हुए थे. उसी प्रकार कोई महिला सच्ची श्रद्धा से इस दिन व्रत रखती है, उसे पुत्र प्राप्ति अवश्य होती है.

पौराणिक कथा-
पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा दक्ष के महल में हो रहे यज्ञ के दौरान जब क्रोध में आकर माता सति ने हवनकुंड में अपनी आहुति देदी, तो उससे समस्त सृष्टि शक्तिहीन हो गई. माता सति शक्ति का रूप थी. इस बात का फायदा उठाते हुए तारकासुर नाम के असुर ने समस्त देवलोक में आतंक मचा दिया था. इस दौरान माता सति शैलपुत्री पार्वति के रूप में जन्मी थीं. काफी कठोर तपस्या के उपरांत जब माता पार्वति और भगवान शिव का विवाह हो गया. तब उनसे कार्तिकेय का जन्म तारकासुर के वध के लिए हुआ था. क्योंकि तारकासुर को केवल भगवान शिव का पुत्र ही पराजित कर सकता था और माता के सति होने के बाद भगवान शिव का कोई पुत्र नहीं था.
लेकिन जब शिव का विवाह पार्वति से हुआ, तो उनसे षष्ठी को कार्तिकेय का जन्म हुआ. जिन्होंने तारकासुर को हराया था. इसलिए मार्गशीष के शुक्ल पक्ष को स्कंद षष्ठी के रूप में मनाया जाता है. जो इस बार 18 दिसंबर को पड़ रही है.