हिंदू धर्म में एकादशी का काफी महत्व माना गया है. महीने में कुल दो एकादशी आती हैं. जिसमें से एक शुक्ल पक्ष को आती है और दूसरी कृष्ण पक्ष को. यानी की साल में कुल 24 एकादशी होती है. अब साल का आखिरी महीना चल रहा है यानी इस साल की केवल दो एकादशी बची है. जिसमें से एक है उत्पन्ना एकादशी. साल के आखिरी महीने में आने के कारण ये एकादशी काफी खास और महत्वपूर्ण मानी जाती है. आइए जानते है इसके नियम और पूजन विधि.
एकादशी का व्रत सभी व्रतों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. ऐसे में उत्पन्ना एकादशी का व्रत संतान प्राप्ति और मोक्ष प्राप्ति के लिए किया जाता है. ये व्रत मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष में रखा जाता है. इस बार उत्पन्ना एकादशी का व्रत 08 दिसंबर को रखा जाएगा.

उत्पन्ना एकादशी का व्रत नियम-
इस एकादशी के व्रत को निर्जला और फलाहार जैसे दो तरीकों से रखा जाता है. निर्जला व्रत कठिन होने के कारण स्वस्थ्य व्यक्ति को ही रखना चाहिए. इस व्रत के पहले दशमी से ही रात को भोजन नहीं करना चाहिए. इसके अलावा एकादशी की सुबह भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करना चाहिए.
क्योंकि मार्गशीर्ष महीना श्रीकृष्ण का प्रिय होता है और इस महीने में उत्पन्ना व्रत का रखा जाता अपने आप में काफी खास है. इस दिन पति-पत्नि को संयुक्त रूप से एक-साथ भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करनी चाहिए. इसके साथ उन्हें पीला रंग अति प्रिय है. इसलिए श्रीकृष्ण को पीले फल-फूल, तुलसी दल और पंचामृत अर्पित करनी चाहिए.
व्रत के दौरान सावधानियां-
- इस एकादशी व्रत के दौरान तामसिक आहार न ग्रहण करें.
- लोगों के प्रति अपना नकारात्मक व्यवहार न रखें.
- अपने दिन की शुरूआत श्रीहरि विष्णु को अर्घ्य देने के साथ करें. साथ ही, इस बात का ध्यान रहें कि श्रीहरि को अर्घ्य जल में हल्दी मिलाकर ही दें. इसमें रोली या दूध का इस्तेमाल न करें.