कैसे बने हनुमान कलियुग के प्रभावशाली देव और चिरंजीवी?

कैसे बने हनुमान कलियुग के प्रभावशाली देव और चिरंजीवी?

हिंदू धर्म में हफ्ते के सातों दिन किसी न किसी देवी-देवताओं को समर्पित होते हैं. ऐसे में मंगलवार का दिन खास श्री राम के परम भक्त और संकटमोचन हनुमान को समर्पित होता है. बजरंगबली की पूजा के लिए ये दिन सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. काफी लोगों का कहना है कि जहां कई भी श्रीराम के नाम का कीर्तन होता है, वहां हनुमान जी का पहरा अवश्य होता है. इसके पीछे ये माना जाता है कि इस कलयुग में हनुमान ही केवल ऐसे देव है, जो हम सबके बीच उपस्थित है. हनुमान को अष्ट चिरंजीवियों में से एक माना जाता है. तो आइए जानते है कि कैसे बने हनुमान चिरंजीवी?

हनुमान को कलियुग का सबसे प्रभावशाली देवता माना जाता है. साथ ही उन्हें कलयुग का जागृत देवता कहा जाता है. इसलिए मान्यता है कि हनुमान जी की आराधना करने से मनुष्य के सभी संकट नष्ट हो जाते हैं. इसलिए उन्हें संकटमोचन भी कहा जाता है.

कैसे बने हनुमान कलियुग के प्रभावशाली देव और चिरंजीवी?

वाल्मीकि द्वारा लिखी गई रामायण के अनुसार, जब माता सीता की खोज करते हुए हनुमान लंका पहुंचे, तो अशोक वाटिका में माता सीता के मिलने पर उन्होंने माता को श्रीराम का संदेश दिया. इससे प्रसन्न होकर माता सीता ने हनुमान को सदा अमर रहने का वरदान दिया था. तभी से हनुमान को अष्ट चिरंजीवी में गिने जाने लगे.

श्रीराम ने कलियुग की दी जिम्मेदारी-

इसका दूसरा कारण ये बताया जाता है कि श्रीराम का पृथ्वी पर उद्देश्य पूर्ण होते ही जब वो अपने धाम यानी वैकुंठ धाम की ओर पधारने लगे, तो हनुमान की श्रीराम के साथ वैकुंठ जाने की ज़िद्द को लेकर श्रीराम ने उनसे कहा कि “उन्हें कलियुग तक यहीं रहना है. एक समय ऐसा आएगा जब तुम्हारे भक्तों को तुम्हारी ज़रूरत पड़ेगी.” श्रीराम की आज्ञा को स्वीकारते हुए हनुमान ने प्रभु को वचन देते हुए कहा कि “जहां आपका जयकारा और कीर्तन होगा वहां मैं अवश्य उपस्थित रहूंगा. इसके अलावा जो भी आपकी भक्ती में लीन होगा. उसकी रक्षा करना मेरा परम कर्तव्य होगा.”

कैसे बने हनुमान कलियुग के प्रभावशाली देव और चिरंजीवी?

बस तभी से आजतक हनुमान हम सबके बीच किसी न किसी रूप में विद्यमान है और जहां कही भी श्रीराम की महिमा का गुणगान होता है, वहां गुप्त रूप से हनुमान अवश्य प्रकट होते हैं.