हिंदू धर्म में भगवान शिव को सृष्टि का संहारक माना गया है. शिव ही ब्रह्मांड में हो रहे परिवर्तन के लिए ज़िम्मेदार हैं. भोलेनाथ के देशभर में अनेकों विश्व विख्यात मंदिर और ज्योतिर्लिंग हैं. जिनके दर्शन के लिए देश-विदेशों से भक्तों की कतारें लगी होती है. उन्हीं मंदिरों में से एक है आदियोगी. जिनके दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. लेकिन शिव को आदियोगी क्यों कहा जाता है. आइए जानते है.
शिव आदि भी हैं, अंत भी हैं. सौम्य भी है और रौद्र भी हैं. मनुष्य, देवताओं के साथ-साथ भगवान शिव को असुर भी पूजते हैं. इनके महेश, गंगाधर, शंकर, महादेव, भोलेनाथ जैसे अनेकों नाम हैं. इन्हीं नामों में से भोलेनाथ का एक और नाम है “आदियोगी”.
माथे पर चांद लिए, ध्यान मुद्रा का ये 112 फीट ऊंचा स्टेचु आदियोगी के नाम से जाना जाता है. जो तमिलनाडू के कोयंबटूर में स्थित है. आदियोगी के रूप में ये भगवान शिव हैं. जो अपनी योगावस्था में हैं. आदियोगी का अर्थ है पहला योगी. भोलेनाथ को योग का जनक कहा जाता है. सबसे पहले योग उन्होंने ही शुरू किया था.

सर्वप्रथम सप्त ऋषियों को दिया योग का ज्ञान-
शास्त्रों के मुताबिक, इंसानों के युग की शुरूआत वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव और शौनक नाम के सप्त ऋषियों से हुई थी. ये सप्तऋषि ब्रह्म देव के मस्तिष्क से जन्मे थे. इन ऋषियों को ज्ञान-विज्ञान, धर्म, ज्योतिष और योग में सर्वश्रेष्ठ बताया गया है. इन सभी को शिक्षा प्रदान करने की ज़िम्मेदारी भोलेनाथ को दी गई थी. यानी भगवान शिव ने ही अपने वैदिक ज्ञान और योग से इन सप्त ऋषियों से योग का उद्गम किया. इसलिए भोलेनाथ को आदिगुरू भी कहा जाता है. क्योंकि सबसे पहले ज्ञान देने वाले गुरू वही थे.