हिंदू महाग्रंथों में माना गया है कि एक मनुष्य के जीवन में नौ ग्रहों का काफी अधिक महत्व होता है. ज्योतिष शास्त्र में मनुष्य का सुखी और दुखी जीवन इन नौ ग्रहों पर ही आधारित माना जाता है. नौ ग्रहों में से राहु और केतू नाम के दो ऐसे ग्रह है, जिन्हें पाप का ग्रह माना जाता है. ये ग्रह अगर किसी मनुष्य पर पड़ जाए, तो उस मनुष्य को उसका अशुभ फल भोगना पड़ता है. लेकिन क्या आप जानते है राहु और केतु है कौन? आइए बताते है.

पौराणिक कथाओं के मुताबिक, जब देवताओं और असुरों के बीच में समुद्रमंथन हो रहा था, तब समुद्र से 14 चीजें एक-एक करके बाहर आ रही थीं. उन चौदह चीजों में से एक था अमृत. देवताओं और असुरों के बीच इस बात को लेकर बहस छीड़ गई कि अमृत कौन ग्रहण करेगा. जो भी अमृतपान करता वे अमर हो जाता. ऐसे में भगवान विष्णु मोहिनी का रूप धारण कर असुरों को अपनी सुंदरता से लुभाने लगे और वे अमृत देवताओं में बांट दिया.
लेकिन स्वरभानु नाम के राक्षस को इस बात का ज्ञात था कि वे श्री हरि ही है. इसलिए वे देवताओं के बीच जाकर छीप गया और जैसी सूर्य देवता और चंद्र देवता को पता चला कि उनके बीच स्वरभानु नाम का असुर छिपा है, तो उन्होंने विष्णु को इस बात से सचेत किया. जब तक भगवान विष्णु ने स्वरभानु पर अपना सुदर्शन चक्र चलाया, तब तक स्वरभानु के कंठ तक वे अमृत पहुंच चुका था. अब इसका पान करने के बाद वे अमर हो गया.

परंतु श्री विष्णु के चक्र चलाने से उसका सर धड़ से अलग हो गया. जिसके बाद उसका सिर वाला हिस्सा राहु कहलाया और धड़ वाला हिस्सा केतु कहलाया. ये दोनों राक्षस कुल के ही सर्प है. राहु का सिर सर्प का है और केतु के शरीर पर सर्प की पूछ.
इन दोनों ग्रहों का प्रभाव इतना है कि इसके आगे शंकर जी, गणपति और मां सरस्वती की पूजा भी अचूक मानी गई है. कुंडली में राहु-केतु का गलत स्थान पर बैठना मृत्यु से भी ज्यादा कष्टदायी होता है. वहीं, यदि ये दोनों ग्रह शुभ स्थान पर विराजित हो, तो उस मनुष्य की कुंडली में राजयोग की संभावना होती है.