हिंदू धर्म में गायों को देवी समान पूजा जाता है. साथ ही इन्हें माँ का दर्जा दिया गया है. हमारे गाय केवल एक दूध देने वाली पशू मात्र नहीं है. बल्कि ये भारत की संस्कृति का भी एक हिस्सा है. इसलिए गाय को हिंदू समाज में गौ माता का दर्जा मिला हुआ है.
पौराणिक कथाओं में सुना है कि देव और असुर लोगों के बीच समुद्र मंथन के दौरान क्षीरसागर से पांच लोकों की गईयां माता के रुप में उत्पन्न हुई थीं. जिनके नाम नंदा, सुभद्रा, सुशीला, सुरभि और बहुला से थे. ये गाय सभी लोकों के लिए प्रकट हुई थी. इसका मतलब है कि गौ माताएं अभी से ही नहीं, बल्कि अनादि काल से ही हमारी भारतीय और हिंदू संस्कृति का एक हिस्सा रही हैं. इसके साथ ऐसा भी माना जाता है कि समस्त देवताओं वास भी गऊ माता में होता है.

माना जाता है कि जिस जगह भी गाय अपने श्वास लेती है या वो जिस स्थान भी जाती है. वे वहां के सारे पापों को खींच उस स्थान की शोभा बढ़ा देती है. इसी कारण से काफी प्राचीन समय से हर घर में गाय पालने की परंपरा चलती आ रही है. गऊ माता को एक तरह से स्वर्ग की सीढ़ी भी माना जाता है.
व्यक्ति के पापों को हरने के साथ-साथ गाय की सभी चीजें यानी की उनका गोबर, मूत्र, दही, दूध और घी का सेवन करने से व्यक्ति सभी प्रकार की बिमारियों से अछूता रहता है. साथ ही उसे किसी प्रकार के रोग भी नहीं होते.

इसलिए गाय के दान को महादान भी कहा गया है. साथ ही ये भी माना जाता है कि गाय की पूछ पकड़ने से व्यक्ति भवसागर को भी पार कर सकता है. साथ ही, पितृ दोष जैसी कुंडली वाले लोग भी यदि पितृ पक्ष के दौरान अपने पितरों को याद कर गाय को दान करते है, तो उनका पितृ दोष भी ठीक हो सकता है.
गाय तो इतनी दयालू होती है कि स्वयं भगवान कृष्ण भी उनके साथ अपना समय व्यतीत करते थे. गौ सेवा किया करते थे. साथ ही, जंगलों में घूम-घूमकर स्वयं गाय को चराया करते थे. जिसकी वजह से उनको गोपाल कहा जाने लगा.