सम्पूर्ण भारत ही नहीं बल्कि पृथ्वी के समस्त देशों में भगवान विष्णु के कई सारे मंदिर हैं, जिसमें प्रभु की अलग-अलग मुद्राएं, उनकी लीलाएं और अलग-अलग स्वरूप की झलक है. कहीं उनके राधारमण अवतार को दिखाया गया है तो कहीं द्वारका के राजा के रुप में विराजमान हैं. लेकिन क्या आपने कभी भगवान को अपनी कमर पर हाथ धरे एक ईंट पर खड़ा देखा है? जी हां, हम बात कर रहे हैं श्री हरि विट्ठल की.

कहानी जुड़ी है पुंडलिक नाम के व्यक्ति से
अगर हम बड़े पंड़ितों या महान ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक बात करें तो उनका कहना है कि इसके पीछे पौराणिक कथा है. छठीं शताब्दी में महाराष्ट्र में जन्मा पुंडलिक नाम का एक कृष्ण भक्त था. पुंडलिक अपने माता-पिता और भगवान श्रीकृष्ण के लिए भाव रखता था. वे काफी सरल, मीठे और सहज स्वभाव का व्यक्ति था. श्रीकृष्ण को उसका व्यवहार काफी पसंद था. एक दिन श्रीकृष्ण तैयार होकर कहीं जाने लगे. उन्हें जाता देख रुकमणि ने उनसे पूछा तो प्रभु ने बताया कि वे अपने प्रिय भक्त को अपने दर्शन देने पृथ्वी पर जा रहे हैं.
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पुंडलिक ने प्रभु को ईंट पर खड़ा होने को कहा
श्रीकृष्ण के साथ रुक्मिणी भी पृथ्वी पर गई. दोनों उस भक्त के द्वार पर प्रकट हुए और बोले, “पुंडलिक! देखो बालक हम रुक्मिणी के साथ तुम्हें दर्शन देने आए हैं.” उस वक्त वह अपने पिता का पैर दबा रहा था. इसलिए उसने श्रीकृष्ण से कहा, “हे नाथ ! मैं अभी अपने पिता की सेवा कर रहा हूँ, आप बस थोड़ी देर प्रतीक्षा कीजिए और तब तक आप ईंट पर खड़े हो जाइए”.
ये बात कहने के बाद वे फिर से अपने पिता की सेवा में लीन हो गए. भगवान ने वैसा ही किया जैसा उनके भक्त ने कहा था. वे अपने कमर पर दोनों हाथ रखकर, एक ईंट पर खड़े हो गए और साथ ही रुक्मिणी भी ईंट पर खड़े होकर पुंडलिक की प्रतीक्षा करने लगी. पिता की सेवा से निवृत होकर पुंडलिक ने पीछे देखा कि प्रभु ने तो मूर्ति का रूप ले लिया है.

मूर्ति कहलाई विट्ठल
पुंडलिक ने उस मूर्ति को अपने घर में विराजमान किया और उनकी खूब सेवा की. ईंट को मराठी में विट कहते हैं. इसलिए ईंट पर खड़ा होने के कारण भगवान कृष्ण की मूर्ति का नाम विट्ठल पड़ गया. बस तभी से हजारों की तादाद में श्रद्धालु भगवान विट्ठल के दर्शन करने जाते हैं.