तुलसी के पौधे को हिंदु धर्म में देवी की संज्ञा दी गई है. तुलसी के पत्तों के बिना कोई भी अनुष्ठान पूरा नहीं माना जाता. सनातन धर्म में इसे जितना अच्छा और शुभ माना जाता है. उतना ही अच्छा इसे आयुर्वेदिक उपचार के लिए भी माना जाता है. तुलसी के पौधे में काफी बेहतरीन औषधीय गुण मौजूद होते हैं.
तुलसी भगवान विष्णु के अवतार “श्रीकृष्ण” को काफी प्रिय है. भगवान कृष्ण बिना तुलसी दल के अपना भोग तक स्वीकार नहीं करते. लेकिन क्या आप जानते हैं कि जहाँ एक तरफ तुलसी श्रीकृष्ण के इतने करीब है, वहीं दूसरी तरफ भगवान गणेश तुलसी के चढ़ावे से भी काफी क्रोधित हो जाते हैं. इसलिए उनके भोग में तुलसी का इस्तेमाल करना वर्जित है. ऐसा क्यों है? इसके पीछे एक पौराणिक कथा है. चलिए जानते है.
तुलसी की पौराणिक कथा
पुराणों में बताया गया है कि एक बार गणेशजी गंगा नदी के किनारे अपनी तपस्या में मग्न थे. भगवान गणेश रत्न जटित सिंहासन पर विराजमान थे. उनके पूरे अंगों पर चंदन लगा हुआ था. गणेश जी ने अपने गले में स्वर्ण-मणि रत्नों के अनेक हार पहने हुए थे. साथ ही, उनकी कमर में अत्यन्त कोमल रेशम का पीताम्बर लिपटा हुआ था.
तब इसी दौरान धर्मात्मज की कन्या तुलसी अपनी विवाह की इच्छा लेकर तीर्थयात्रा पर निकली थी. अपनी इस तीर्थयात्रा के दौरान देवी तुलसी उसी गंगा के तट पर पहुँची, जहाँ गणेशजी अपनी तपस्या में लीन थे. तभी देवी तुलसी की नज़र तपस्या में मग्न गणेशजी पर गई. तब तुलसी श्रीगणेश को देख उनके सुंदर स्वरुप पर मोहित हो गईं. तुलसी के मन में गणेश जी से विवाह करने की इच्छा जाग्रित हुई. इससे भगवान गणेश की तपस्या भंग हो गई. उसके बाद भगवान ने तुलसी द्वारा उनकी तपस्या भंग करने को अशुभ बताया और तुलसी की उनसे विवाह करने की मंशा जानकर गणेशजी ने उसके प्रस्ताव को नकार दिया.

जिसके बाद इस बात से नाराज़ होकर तुलसी ने भगवान गणेश को दो विवाह होने का श्राप दे दिया. इस बात पर क्रोधित हो भगवान गणेश ने भी देवी तुलसी को एक राक्षस की पत्नी होने का श्राप देते हुए कहा कि तुम्हारा विवाह शंखचुर्ण नाम के राक्षस से होगा. इस श्राप को सुनकर तुलसी ने भगवान से मांफी मांगकर उनका दिया यह श्राप वापस लेने को कहा. तब गणेशजी ने कहा कि तुम्हारा विवाह होगा तो राक्षस से, किंतु तुम भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की प्रिय रहोगी. इसके साथ ही तुम कलयुग में समस्त संसार के लिए जीवन और मोक्ष का मार्ग होगी. यह कहते हुए भगवान गणेश ने कहा कि तुम सबकी पूजा में शुभ होगी लेकिन मेरी पूजा में तुलसी चढ़ाना वर्जित माना जाएगा.